जैन विद्या कार्यशाला हुई प्रारम्भ
चेन्नई. ठाणं सूत्र में दूसरे स्थान में धर्म के दो प्रकार बताए गए हैं -श्रुत धर्म, चारित्र धर्म| वैसे धर्म के अनेक वर्गीकरण किए जा सकते हैं, उनमें एक वर्गीकरण हैं ज्ञान धर्म और आचार धर्म! आचार का पालन तब सही हो सकता है, जब वह ज्ञानपूर्वक होता है| ज्ञान विहीन चारित्र का पालन, चारित्र विहीन ज्ञान दोनों अधुरे होते हैं| उपरोक्त विचार माधावरम् स्थित महाश्रमण समवसरण में श्रावक समाज को संबोधित करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहे|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि कुछ लोग जानते हैं लेकिन आचरण करने में समर्थ नहीं होते, कुछ लोग आचरण करने में समर्थ होते पर कैसे क्या करना चाहिए यह ज्ञान नहीं होता है| ज्ञानपूर्वक आचार का पालन करनेवाले विरले ही होते हैं| गुरु के श्री मुख से निकलने वाली वाणी को सुनकर ज्ञान हो जाना श्रुत धर्म के अंतर्गत आता है|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि प्राचीन काल में सुनकर ज्यादा ग्रहण किया जाता था, आगम का श्रवण कर आगे से आगे ज्ञान का विकास किया जाता था| आज पुस्तकें पढ़कर समझ लिया जाता है| आज़ के वैज्ञानिक युग में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अध्यापक अपने छात्रों को संबोधित कर ज्ञान प्रदान करते हैं| श्रुत का अभ्यास करना भी धर्म के अंतर्गत आता है|
अध्ययन, स्वाध्याय, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा आदि सभी ज्ञान की आराधना में सहायक बन सकते हैंं| क्या-क्या पढ़ें? ज्ञान अनन्त है, कोई आर-पार नहीं है, ऐसे में ज्ञान की आराधना कैसे करें? हमारे पास समय थोड़ा है, जीवन छोटा है, बीच-बीच में विघ्न बाधाएं भी आती रहती है, ऐसे में हम क्या करें? सारभूत ज्ञान ग्रहण करने का अभ्यास करना चाहिए|
हंस जैसे दूध में से पानी को अलग कर केवल दूध ग्रहण करता है, वैसे ही हम भी सारभूत, खास-खास ज्ञान को अर्जित करने का अभ्यास करना चाहिए| भगवान महावीर ने चारित्र के दो प्रकार प्रतिपादित किये हैं -अगार धर्म,अणगार धर्म|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि साधु बनकर धर्म की आराधना नहीं कर पाने वाले अणुव्रत धर्म को स्वीकार करने का प्रयास करें, बारह व्रती बने| साधु पूर्ण रूप से महाव्रती होते हैं ,हमारे लिए वह दु:साध्य है| ज्ञान सहित स्वीकार कर अणुव्रत धर्म को स्वीकार कर जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करें| ईच्छाओं का सीमाकरण, परिभ्रमण का सीमाकरण करने का प्रयास करना चाहिए|
साध्वी प्रमुखाश्री कनक प्रभा जी ने साध्वी गुलाबाजी के जीवन की घटनाएं बताते कहा कि साधक अपने साधना काल में साध्वी गुलाबाजी की तरह अनुशासन प्रिय बने, अपनी ग्रहण शक्ति को बढ़ा कर ज्ञान का विकास करते हुए आध्यात्म के मार्ग को प्रशस्त बनाने की प्रेरणा दी| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया|
*जैन विद्या कार्यशाला हुई प्रारम्भ*
अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् एवं समण संस्कृति संकाय के तत्वावधान एवं तेयुप चेन्नई की आयोजना में आयोजित “जैन विद्या कार्यशाला 2018” आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में प्रारम्भ हुई! “जीव अजीव” पुस्तक पर आधारित इस कार्यशाला में चेन्नई के अलावा बाहर के काफी संख्या में भाई बहन भाग ले रहे हैं| मुनि श्री जम्बूकुमारजी, मुनि श्री मननकुमारजी, मुनि श्री शुभंकरजी आदि मुनि वृदं विषयों पर प्रशिक्षण दिया, दे रहे हैं| तेयुप अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि 17 अगस्त तक कार्यशाला चलेगी और 19 अगस्त को इसकी लिखित परीक्षा होगी| संयोजक हरीश भण्डारी एवं अंकित चौरड़ीया ने कार्यशाला की नियमावली प्रस्तुत की| मंत्री मुकेश नवलखा ने आभार ज्ञापन किया|
*अहिंसा सभागार का हुआ उद्घाटन*
प्रात:कालीन आचार्य श्री महाश्रमण के वृहद मंगलपाठ श्रवण के बाद माधावरम् स्थित आचार्य महाश्रमण तेरापंथ जैन विद्यालय के तृतीय मंजिल पर बने अहिंसा सभागार का उद्घाटन उद्घाटन कर्ता श्री भगवतीलालजी तेजप्रकाशजी संजयजी चौरड़ीया पूर भिलवाड़ा निवासी, चेन्नई प्रवासी ने किया| इस अवसर पर चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचन्द लुंकड़, तेरापंथ वेलफेयर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री देवराज आच्छा के साथ गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे|