चेन्नई. एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि अरिहंत औश्र सिद्ध के ज्ञान की सप्लाई करने वाले होते है आचार्य , उपप्रर्वतक, साधु और साध्वी। गुरु हमारे पथ प्रदर्शक है। गुरु नहीं तो जीवन शुरु ही नहीं । जो हमारे गुरुर को मिटा दे वो है गुरु। गुरुवर तो समान रूप से ज्ञान देते है मगर ग्रहएा करने वाले का अलग अलग नजरिया रहता है।
उमेशमुनि ने भी 1954 में संयम अंगीकार करके सभी को ज्ञान का दान दिया। उन्होंने आगम का अनुवाद कर के संघ को बहुत बड़ी उपलब्धि दी। उनकी कथनी और करनी समान थी। वे जहां भी गुण्ण देखते उसे सीखने का प्रयास करते। उन्होने सिर्फ गुण चुनकर समूचे जीवन को गुणो का सागर बना लिया था। उनके पवित्र जीवन के सामने बड़े बड़े विद्वान, राजनेता और विरोधी नतमस्तक थे।
ऐसे चुम्बकीय व्यक्तिव के धनी देह से कमजोर पर दिल से उदार थे। जिनके मन में सरलता, वचन में मधुरता ,काया में विनम्रता, नयनों में वात्सल्यता, चेहरे पर प्रसन्नता और चैतन्य में चिंतन, आत्मा में मुमुक्षता के भाव थे। उनकी संयम साधना, निर्णय शक्ति और अनुशासन के आगे सभी झुकते थे।