साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा परमात्मा ने मनुष्य को जीवन का स्वरूप समझाया है। ज्ञानी महापुरुष कहते हैं कि जो हमारा है वह कभी खोएगा नहीं और जो नहीं है वह रुकेगा नहीं। इस बात का मनुष्य को अगर अंतरात्मा से ज्ञान हो जाए तो तकलीफ नहीं होगी। इसके लिए गहन चिंतन कर आत्मा की निर्जरा करनी चाहिए क्योंकि सब कुछ मरेगा लेकिन आत्मा कभी नहीं मरेगी बल्कि शरीर बदल लेगी।
हमारा शरीर अनित्य है और बाहरी सजावट से सुशोभित है लेकिन मनुष्य को यह ज्ञान होना बहुत ही जरूरी है कि शरीर में कुछ भी डालो रुकेगा नहीं, क्योंकि बाहर की वस्तुएं खुद की नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि मनुष्य को बाहरी चिंता करने के बजाय आत्मा की चिंता करनी चाहिए।

जिस कार्य के करने से आत्मा को पोषण मिले वहीं धर्म क्रिया करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य जो भी करे उसे लगन और भावना से करे क्योंकि भावना और लगन से किया हुआ कार्य आनंद पहुंचाता था। वंदना का लाभ तभी मिलेगा जब उनका सम्मान होगा। ऐसे में व्यक्ति को कुछ भी करने से पहले उसके स्वरूप को समझना चाहिए। धर्म करने में जो भाव होते हैं वे अनुपम होते हैं।
सागरमुनि ने कहा परमात्मा ने जगत के सभी जीवों को आचरण का उपदेश दिया है जो ऊपर उठाने का कार्य करता है। जिनमें आचरण के गुण होते है वे परमात्मा बन जाते हैं। चारित्र से धर्म की आराधना करने वाले दिव्यगति को प्राप्त करते हैं। क्रोध, मान, लोभ मनुष्य को पाप की द्वार पर ले जाता है। इससे बचने का हर दम प्रयास करते रहना चाहिए। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।