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जो आत्मा को परतंत्र करता हैं, दु:ख देता है,

जो आत्मा को परतंत्र करता हैं, दु:ख देता है,

वीरपत्ता की पावन भूमि आमेट के जैन स्थानक मे साध्वी चन्दन बाला ने कहा जो आत्मा को परतंत्र करता हैं, दु:ख देता है, संसार में परिभ्रमण कराता है उसे कर्म कहते हैं। अनादि काल से जीव का कर्म के साथ सम्बन्ध चला आ रहा है, इन दोनो का अस्तित्व स्वत: सिद्ध है। ‘मैं हूँ।” इस अनुभव से जीव जाना जाता है और जगत में कोई दरिद्र है कोई धनवान है, कोई रोगी है कोई स्वस्थ्य है इस विचित्रता से कर्म का अस्तित्व जाना जाता है।

वे कर्म मुख्य रुप से आठ प्रकार के हैं – (1) ज्ञानावरणी (2) दर्शनावरणी (3) वेदनीय (4) मोहनीय (5) आयु (6) नाम (7) गोत्र (8) अंतराय

साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होती है। माना जाता है कि जो व्यक्ति के कर्मों के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करता है, उसे जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। ऐसे में यह कहा जाता सकता है कि व्यक्ति का भविष्य उसके कर्म के आधार पर ही तय होता है। यदि व्यक्ति के कर्म अच्छे हैं, तो वह नई ऊचाईंयों को छू सकता है, वहीं बुरे कर्म व्यक्ति को बर्बाद करने की भी ताकत रखते हैं।

*इस धर्म सभा का संचालन*

*सुरेश दक ने किया*

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