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ज्ञान वाणी

जैसी संगत वैसी रंगत: साध्वी धर्मलता

जैसी संगत वैसी रंगत: साध्वी धर्मलता

चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जैसी संगत वैसी रंगत हो जाती है। महर्षि बाल्मीकि कुसंग से डाकू बन गए थे, संतों का क्षणिक संपर्क जीवन की दिशा बदल देता है। साध्वी ने कहा गंगा पाप का, चंद्रमा ताप का, कल्पवृक्ष दीनता के अभिशाप का अपहरण करता है लेकिन सत्संग पाप, ताप व दैन्य तीनों का तत्काल नाश कर देता है। संतों के संग से वैर और अभिशाप का सुलगता दावानल बुझ जाता है। जैसे पारस के संपर्क से लोहा सोना बन जाता है वैसे ही संतों के संग से पापी धर्मात्मा बन जाता है। आज के युग में संत और साहित्य ही उत्थान के मार्ग हैं।

 

आध्यात्मिक भाव रत्नों से भरी मंजूषा के समान है। यदि मन स्थिर न होने पर होने वाली आराधना व्यर्थ होती है। जबान पर शब्द और हृदय में भाव हो तब तक तो ठीक वरना वैसे ही होता है जैसे तेली का बैल कहीं पहुंचता नहीं और केवल एक ही सर्किल में घूमता रहता है वैसे ही इन्सान भी चारों गतियों में घूमता रहेगा। जन्म-मरण के चक्र से छूटने के लिए सत्संग जरूरी है। संग का अर्थ संपर्क, सामीप्य और निकटता। किसी के संपर्क में आने और समीप रहने को संग कहते हैं।

 

साध्वी सुप्रतिभा ने कहा कर्म की अदालत में न तो कोई सिफारिश चलती है और न ही रिश्वत। ज्ञानावरणीय जीव छह कारण से कर्म बांधता है-ज्ञानी की निंदा करने से, द्वेष, अपमान करने से, ज्ञानदाता गुरु का नाम छिपाने से, झगड़ा करने से और ज्ञान प्राप्त करने में अंतराय देने से।

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1 Comment

  1. Very meaningful and nice pravchan

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