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जीव का अजीव से अलग करना मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक है- युवाचार्य महेंद्र ऋषि

जीव का अजीव से अलग करना मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक है- युवाचार्य महेंद्र ऋषि

एएमकेएम में गौतम रास और उत्तराध्ययन सूत्र का हुआ स्वाध्याय

एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी के सान्निध्य में शनिवार प्रातः गौतम रास और उत्तराध्ययन सूत्र के 36वें अध्ययन जीव-अजीव विभक्ति का स्वाध्याय हुआ। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। युवाचार्यश्री ने इस अवसर पर कहा कि नाम के अनुरूप इस अध्ययन में जीव और अजीव को अलग-अलग कर पूर्ण रूप से निरुपित किया गया है। जीव- अजीव, ये दो तत्व उन्हीं के संयोग- वियोग का परिणाम है। जीव- अजीव का अनादि संबंध है। लेकिन तप-संयम आदि साधना के द्वारा इस संबंध को अलग किया जा सकता है।‌ तब जीव शुद्ध रूप, अपना निज स्वरूप प्राप्त कर लेता है और पुद्गल से संपूर्ण रुप से विमुक्त होकर सिद्ध बन जाता है।

उन्होंने कहा जब तक जीव के साथ अजीव का संबंध रहता है, तब तक शरीर, इंद्रियों, मन आदि की रचना होती है। जीव में ममत्व, मूर्छा का अस्तित्व रहता है लेकिन द्रव्यों, भौतिक पदार्थों के प्रति उसका आकर्षण रहता है। यही जीव की वैभाविक प्रकृति है जो राग-द्वेष, संकल्प-विकल्प के माध्यम से प्रकट होती है और यही जीव का संसार है जिसमें वह अनादिकाल से भ्रमण करता है। उन्होंने कहा जीव का अजीव से अलग करना मोक्ष की प्राप्ति के लिए आवश्यक है। इसे भेद विज्ञान कहा जाता है। भेद विज्ञान होते ही जीव स्वयं को पुद्गलों, कर्मों से अलग समझने लगता है। भेद विज्ञान समझ लेने के बाद सम्यक दर्शन हो जाता है और जीव अपनी आत्मा में रमण करने लगता है, यही सम्यक चारित्र है। संयम, चारित्र की पूर्ण निर्मलता और समग्रता ही जीव की मुक्ति है।

उन्होंने कहा भगवान महावीर सिद्ध गति में गए। शरीर के रूप में हमारे बीच से चले गए लेकिन उन्होंने सिद्ध पद प्राप्त किया। उन्होंने कहा आज के युग में ईस्वी सन्, विक्रम संवत प्रचलित है लेकिन वीर संवत् 2551 वर्ष पहले प्रारंभ हुआ। केवलज्ञान सर्वोच्च लब्धि है। गौतमस्वामी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। इस अवसर्पिणी काल में पांचवें गणधर सुधर्मा स्वामी को पहला आचार्य चुना गया। आचार्य सुधर्मा स्वामी ने 32 आगमों की वांचना कर बड़ा उपकार किया। ये 32 आगम द्वादशांगी के बाद नहीं है।

उन्होंने कहा आज आवश्यकता है हम संघ के गौरव को बढ़ाएं। हम सभी पद, प्रतिष्ठा, कुर्सी इन सबको बांधकर नहीं रखें। धर्मसभा आराधना, उपासना के लिए होनी चाहिए। जहां जिनवाणी की बात आती है तो वह सुधर्मा पाट है। यदि आप अपनी दिनचर्या में उत्तराध्ययन सूत्र के 36वें अध्ययन का नियमित रूप से स्वाध्याय करो तो उसका प्रभाव आप स्वयं देखेंगे। यह महान प्रभावशाली है।‌ जितनी साधना करोगे, महावीर कल्याणक महत्वपूर्ण रोल निभाएगा। साधना का अवसर गंवाओ मत। जितनी हो सके, आराधना करने का लक्ष्य रखो। वह हमारी ताकत बनेगी। मुनि हितेंद्र ऋषिजी ने बताया कि आगामी 6 नवंबर को ज्ञान पंचमी के दिन नंदी सूत्र की वांचना होगी। इस मौके पर गौतम प्रतिपदा के उपलक्ष्य में ड्राइफ्रूट्स की प्रसादी बांटी गई। राकेश विनायकिया ने सभा का संचालन किया।

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