चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा संयम के अभाव में मन चंचल है। जीवन में संयम बहुत जरूरी है। प्रकृति व आध्यात्मिक व्यवस्था संयमबद्ध है तथा सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था भी संयमबद्ध है। आत्मा राग द्वेष के कीच में फंसी हुई है और विभिन्न योनियों की यात्रा जारी है। हम अंधे बने हुए हैं। जिसने भी संयम का उल्लघन किया वह दुखी हुआ है।
आप सडक़ पर नियमबद्ध चलते हैं तो गिरते नहीं हैं। आपने प्रकृति का उल्लंघन किया तो प्राकृतिक प्रकोप बढ़ गया। ऋतुएं अब समय पर नहीं आती। नट रस्सी पर बैलेंस बनाकर चलता है तो गिरता नहीं है। बैलेंस बिगड़ता है तो गिर जाता है। परमात्मा व्यक्ति की तरह नहीं सिद्धांत की तरह है। जो उस सिद्धांत को मानकर जाग जाता है नियम व संयम के साथ एकमेव हो जाता है वह स्वयं परमात्मा हो जाता है।
मनुष्य संयम के अनुकूल चलता है तो स्वयं की गहराई को पा लेता है। भय व लज्जा से यदि व्रत ग्रहण किए है ंतो वे व्रत सम्यक नहीं हैं। भोगों की उदासीनता से यदि जन्मे हैं तो वे व्रत सम्यक हैं। नैतिक आचरण से समाज प्रभावित होता है परमात्मा नहीं। कषाय का मंद होना अलग बात है और धर्म का जन्म होना अलग। पांच पाप के त्याग के साथ राग द्वेष का त्यााग भी जरूरी है तभी तो धर्म का जन्म होगा।