ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जीवन में ज्ञान दृष्टि से दिशा बदलती है और दिशा बदलने से दशा बदलने में देर नहीं लगती। ज्ञान के दो काम है सावधान करना और समाधान करना। ज्ञान का लगे बोध तो हो आत्मा का शोध। ज्ञान रूपी लाइट लगाकर आत्मा को ब्राइट बनाओ। हेय-ज्ञेय, उपादेय की सम्यक जानकारी के अभाव में हमारा ज्ञान अधूरा रहता है मन रूपी मंदिर में ज्ञान का दीप जलाकर प्रभु का साक्षात्कार किया जा सकता है।
बच्चे को उपदेश देना है तो पहले स्वयं उदाहरण बनो क्योंकि दूध और बच्चे दोनों ही समान है। दूध में जावण डालो तो दही जम जाता है लेकिन नींबू के रस की एक बूंद से फट जाता है वैसे ही बच्चे में सुंसस्कारों की जावण डालो तो राम कृष्ण बनते देर नहीं लगेगी पर कुसंस्कारों का तेजाब डालने से रावण और कंस भी बन सकता है।
इसलिए ज्ञान व चारित्र से संसार सागर पार करो। इंसान के जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करके प्रकाश को फैलाने वाला और शांति को प्रदान करने वाला जीवन में धर्म को विस्तृत करने वाला ज्ञान ही है। सूर्य पर बादल छा जाने से अंधेरा होता है और आंखों पर मोतियाबिंद होने से दिखना बंद हो जाता है। वैसे ही आत्मा पर अज्ञान और मिथ्याव का पर्दा आते ही ज्ञान कोसों दूर चला जाता है।
इसलिए दो बातें हमेशा याद रखना चाहिए ज्ञान के प्रति श्रद्धा और बड़ों के प्रति विनय। उद्दंडी, रसलोलुपी और क्रोधी को ज्ञान नहीं जगमगा सकता। ज्ञान सुखों की खदान है इसलिए ज्ञान और दान पर अभिमान को हावी मत होने दो।
सुप्रतिभा ने अंतगड़सूत्र का वांचन किया। अपूर्वा ने गीतिका प्रस्तुत की। इस अवसर नमस्कार का चमत्कार विषय पर नाटिका प्रस्तुत की गई।