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ज्ञान वाणी

जीवन में अपने रिश्तों की पूजा करें, रिश्तेदार की नहीं: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

आचार्य प्रवीण ऋषि जी

चेन्नई. उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि महाराज ने बोट क्लब, चेन्नई स्थित नवरतनमल भरत अजीत चोरडिय़ा के निवास पर श्रद्धालुओं को संबोधित किया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि कर्म अपने आधीन होते हैं और धर्म अपना पुरुषार्थ है।

कर्म, धर्म और जीवन से परे हमारे ऊपर रिश्तों की सत्ता चलती रहती है। कर्म से आदमी मजबूर नहीं होता और धर्म से कई बार मजबूत नहीं होता। जितने रिश्ते मजबूर होते हैं उतना कर्म कभी मजबूर नहीं करते। जितना रिश्ते कभी मजबूत करते हैं उतना धर्म कभी मजबूत नहीं कर पाता है।

किसी भी कर्म की स्थिति रिश्तों की स्थिति से अधिक नहीं है। रिश्तों की प्रकृतियां इतनी है कि उसे गिनना संभव नहीं है। एक रिश्ता होता है एक दूसरे को तकलीफ देने का और दूसरा होता है एक दूसरे को प्यार देने और लेने का।

दोनों ही रिश्ते जीवन को रुलाते भी हैं और हंसाते भी हैं। वे सौभाग्यशाली हैं जिनके निहाणुबंध रिश्ते होते हैं। वेराणुबंध के रिश्ते बार-बार नरक में ले जाते हैं। आगम में कहा गया है कि देवता का कोई स्नेहीजन अपने कर्मों से नरक में भी गया हो तो उसे साता देने के लिए भी देव लोक का देवता नारकी की यात्रा करता है। यह रिश्तों की गहराई है।

आगम में रिश्तों से इन्कार करने वाले को परमात्मा ने झूठ कहा है और अठारह पापों में सबसे भयंकर पाप झूठ का है।

राजा प्रदेशी और सूर्यकांता रानी के प्रसंग में आया है कि जैसे ही राजा के मन में परिवर्तन आया तो उसकी सबसे प्रिय रानी ने ही उसके प्राण ले लिए। क्योंकि वह रिश्ता आत्मा के साथ नहीं बल्कि सत्ता, संपत्ति और स्वार्थ का था। आत्मा का रिश्ता अरिष्ठनेमी और राजुल का था जो ठुकराने के बाद भी ठुकराए नहीं जाते उन रिश्तों में भगवान होते हैं, उन्हें ही मंजिल मिलती है। यह अटूट रिश्तों की पहचान है जो तोडऩे से भी टूटे नहीं और जोडऩे से जुड़े नहीं। रिश्ते कभी परिचय के मोहतज नहीं होते, उन्हीं रिश्तों में भगवान है।

आंखों से ओझल होते ही जो दिलों से ओझल हो जाते हैं वे ओस के रिश्ते होते हैं, जो आंखों से ओझल होने के बाद भी जो चमकते रहते हैं वे मोती के रिश्ते हैं। ऐसी आस्था और रिश्तों को अपने जीवन में बनाए रखें। अपने रिश्तेदार की नहीं रिश्तों की पूजा करें।

उपकारियों को सदैव याद रखो, उन्हें कभी मत भूलो। जब तुम उपकरियों को भूल जाओगे तो वे भी तुम्हें भूल जाएंगे। इसमें तुम्हारा ही ज्यादा नुकसान है। उन्हें याद रखोगे तो वे तुम्हारे जीवन में चले आएंगे। उपकारी को भूलना स्वयं के जीवन को रेगिस्तान बनाना है। तुम्हारी भी जिंदगी में बहुत आते होंगे लेकिन फलित नहीं होते। जिनके रिश्ते नन्दनवन के होते हैं वहां केसर की क्यारियां खिली रहती है। रिश्ता अमर होगा तो अमरता तक पहुंच जाएंगे।

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