मेलपेराडिकुपम, विल्लुपुरम (तमिलनाडु): सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति का शंखनाद करती हुई अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमणजी के साथ निरंतर गतिमान है। दक्षिण भारत की धरा को पहली बार अपने चरणरज से पावन बना रहे आचार्यश्री लोगों को सन्मार्ग दिखा रहे हैं और लोगों को मानवता का संदेश दे रहे हैं।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार को तिण्डिवनम् से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया तो स्थानीय नगरवासी श्रद्धालु अपने आराध्य के अपने-अपने घरों आदि के समक्ष दर्शन कर मंगल आशीष प्राप्त किया। आज सुबह से ही आसमान में बादल छाए हुए थे। इस कारण सूर्य अदृश्य बना हुआ था। इसके साथ ही तेज गति से चलती हवा ने मौसम को और खुशनुमा बना दिया था। खुशनुमा माहौल में आचार्यश्री गतिमान हुए।
आचार्यश्री नगर से कुछ दूर ही चले थे कि मार्ग के किनारे दोनों ओर कई परिवार रंगोली बनाने में प्रयोग होने वाली सामग्री की निर्माण कर रहे थे। वे सफेद पत्थर को पीसकर और उसमें कई प्रकार के रंगों को मिलाकर रंगोली के रंग-बिरंगी उस सामग्री का निर्माण कर रहे थे। आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर मेलपेराडिकुपम स्थित प्राथमिक विद्यालय में पधारे। विद्यालय परिसर के समीप फुरेक संस्था के लोगों ने आचार्यश्री का स्वागत-अभिनन्दन किया।
विद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी का मन मोहासक्ति के बंधन में बंध हुआ होता है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी आदमी को आसक्ति से बचने का प्रयास करना चाहिए और अपने जीवन में अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए।
जिस प्रकार कमल पानी में रहते हुए भी पानी से निर्लिप्त रहता है, उसी प्रकार आदमी को संसार में रहते हुए संसार में आसक्त होने से बचने का प्रयास करना चाहिए और अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। आसक्ति के कारण आदमी लोभ आदि में भी संलग्न हो जाता है। आदमी को अनासक्ति की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भाव ही बंधन और मोक्ष के कारण होते हैं। इसलिए आदमी को अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त फुरेक संस्था के अंतर्गत स्थानीय बच्चों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति देकर आचार्यश्री के प्रति अपनी प्रणति अर्पित की। संस्था के अध्यक्ष श्री अब्दुल समद तथा श्री गौतम सेठिया ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति दी तथा आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।