अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में साध्वी कुमुदलता ने शुक्रवार को दिशा परिमाण अणुव्रत पर चर्चा करते हुए कहा कि जीवन जीना भी एक कला है और व्यक्ति को यह कला आनी चाहिए। परमात्मा वीणा रूपी जीवन तो सभी को देता है लेकिन उसे बजाना हर किसी को नहीं आता।
इसीलिए संसार में अनैतिकता, अत्याचार और अशांति फैलती है। दुनिया को समझने से पहले खुद का अवलोकन करना चाहिए और दूसरों कीे सीख देने से पहले खुद को समझ लेना चाहिए। इस भौतिकता की चकाचौंध में व्यक्ति कहीं खो न जाए इसलिए भगवान महावीर ने भक्तों को कई उपदेश दिए हैं।
अपने आप को समझने का प्रयास करें। व्यक्ति अगर परभाव को छोडक़र स्वभाव में जीने का प्रयास करेगा तो जीवन आनंदमय बन जाएगा। साध्वी पदमकीर्ति ने मां पदमावती की स्तुति का संगान किया।
दिशा हमारे जीवन की दशा बदल देती है। भगवान महावीर और ऋषभदेव से लेकर तीर्थंकरों ने भी दिशा परिमाण व्रत का वर्णन किया है। वास्तुशास्त्रों में भी दिशाओं के संबंध में भगवान महावीर और ऋषभदेव द्वारा उल्लेखित बातों का अनुसरण किया जाता है।
व्यक्ति अगर महावीर के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए दिशा परिमाण व्रत का पालन करते तो उसे जीवन में में सुखों का संचार होगा। ईस्ट-साउथ कॉर्नर की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा इस कॉर्नर को भगवान महावीर ने अग्नि कॉर्नर बताया है। इस कॉर्नर में अगर रसोई घर होता है तो वहां बनने वालो भोजन स्वास्थ्यपरक होगा।
हमार घर मंदिर होता है इसलिए घर का वास्तु सही होना चाहिए। हमें अपने भोजन करते वक्त भी दिशा का भी ज्ञान होना चाहिए क्योंकि सही दिशा में भोजन नहीं करने से हमारे शरीर में कई प्रकार की बीमारियों की आगमन हो जाता है।
इसके अलावा भोजन और जल ग्रहण खड़े होकर नहीं करना चाहिए। जमीन पर बैठकर भोजन करने से हमें धरती की ऊर्जा प्राप्त होती है। साध्वी महाप्रज्ञा ने जीवन की सार्थकता पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जीवन में शिक्षा का एक बड़ा महत्व जीवन अर्थ समझना भी होता है।