चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि अदालत में भले ही वकीलों को बहस करने की छूट रहती हो लेकिन फैसला करने का अधिकार केवल न्यायाधीश को ही होता है। इसी प्रकार जीवन की अदालत में भी जीव को केवल कर्म करने का अधिकारी होता है।
पाप-पुण्य के निर्णय का अधिकार सिर्फ कर्म सत्ता अथवा परमात्मा के हाथ में रहता है। उन्होंने कहा कि आदमी को पाप से बचना चाहिए क्योंकि इससे सद्गति भी दुर्गति में बदल जाती है। यदि सांसारिक कार्यों के लिए निकाले गए समय का दस प्रतिशत भाग भी धर्म के लिया जाए तो पाप से मुक्ति पाया जा सकता है।
चौबिस घंटे कपड़े पहनने का शौक रखने वाले को कम से कम दस मिनट कपड़े की सफाई के लिए भी जरूर निकालना चाहिए।