महासती ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक मानव स्वतंत्रता पसंद करता है। बंधन नहीं, मानव तो क्या पशु भी स्वतंत्रता पसंद करते है परंतु सच्ची स्वतंत्रता तो मुक्त अवस्था में है बंधन क्या है ? जिसमें बांधा जाए जाए वह बंधन है। यह जीव भी शरीर और कर्म के बंधन में बंधा हुआ है जिसे बंधन खटकता है वहीं बंधन को तोड़ने का प्रयत्न प्रतख्यांन आदि से करता है।
बंधन किसी को पसंद नहीं है फिर भी कहां-कहां बंधन जरूरी है जैसे खेत में बाढ़ का, घोडे में लगाम का, सिंह को पिंजरे का, हाथी को शकल का, विद्यार्थी को शिक्षक का, उक्त उद्गार स्वतंत्रता दिवस पर मा.सा.ने व्यक्त किये। जीव रागद्वेष के बंधन में पडा हुआ है।
वह लोहे की जंजीरों को तोड़ सकता है परंतु राग के बंधन में बंधा हुआ है इसी कारण उसकी मुक्त अवस्था नहीं हुई। इंसान की स्तिथि उसी भ्रमर की भांति हो रही है जो लकड़ी को तो खुरेड देता है किंतु फूलों के राग में बंध जाता है और मृत्यु को प्राप्त कर जाता है।
आज के दिन हमारा देश अंग्रेजों के बंधन से मुक्त हुआ था। अंग्रेजो की गुलामी से त्रस्त हो चुका था परंतु विचार करो इस जीव पर, मोहनीय कर्म अनादि काल से हावी हो रहा है।
कर्मों की गुलामी में आत्मा अनादि काल से पड़ी हुई है जब तक कर्म की सत्ता से मुक्त नहीं होंगे तब तक हमारी सच्ची स्वतंत्रता नहीं है। आज के दिन ध्वज बन्दन कर मिठाई खाकर आनंद मनाते हैं यह तिरंगा ध्वज हमें शौर्य, वीरता और प्रेम का प्रतीक बनने की प्रेरणा देता है।
धार्मिक क्षेत्र में ज्ञान, दर्शन, चरित्र ,का संदेश देता है। जीव सात प्रकार की परतंत्रता से जकड़ा हुआ है। कर्म पांच इंद्रियों, चार संज्ञा, मिथ्यात्व, गति ,देह और परिजन से बंधा हुआ है। साध्वी सुप्रतिभाजी मा. सा.ने कहां की जैन कुल में पैदा होना अलग बात है। जैनी होना अलग बात है। देव गुरु धर्म पर सच्ची आस्था रखना चाहिए।
बताते चले की दिनाक 18 /8/2018 अनुपूर्वी जाप का अनुष्ठान किया जायेगा।