कोडमबाक्कम वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज शुक्रवार तारीख 30 सितंबर को परम पूज्य सुधा कंवर जी मसा ने तालेडा परिवार अशोकजी महावीर जी और गौतमजी की इस चातुर्मास में निरंतर देते रहे अद्भूत सेवाओं की अनुमोदना और प्रशंसा की! विहार टीम की अद्भुत सेवाओं की सराहना करते हुए, उनकी अनुमोदना करते हुए, आगे भी भविष्य में ऐसी ही सेवाएं देते रहने की प्रेरणा दी! मंत्रीजी देवीचंदजी की सराहना करते हुए कि इतनी बडी विहार टीम का गठित करना और सबको सप्रेम बांधकर निभाना अपने आप में एक अनोखा एवं सुखद उदाहरण है समाज के लिए!
प.पू.सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया कि हमें हमारी जिंदगी मे कृष्ण जैसे लोगों का अभिवादन करना चाहिए और हमें भी किसी दूसरे की जिंदगी में कृष्ण जैसा ही बनना चाहिए! अर्जुन जैसे महारथी को कृष्ण का साथ मिला, दुर्योधन जैसे महारथी को शकुनि जैसे मामा का साथ और कैकेयी जैसी महारानी को मंथरा जैसी दासी का साथ मिला! हमें शकुनि मामा जैसे या मंथरा दासी जैसे लोगों का साथ नहीं देना चाहिए और ना ही किसी की जिंदगी में ऐसा बनकर प्रवेश करना चाहिए!
एक बार किसी से भी अच्छा या बुरा व्यवहार हो गया तो उसके बाद , हमारे हाथ में कुछ नहीं रहता है जो करना है वह सामने वाला करता है! हमारा व्यवहार तय करता है कि कौन हमें उसकी जिंदगी में दोस्त बनाना चाहता है! हमारे संबंध और हमारी संवेदना और हमारा बोलना बहुत कुछ मायने रखता है हमारी जिंदगी में! हमें कुछ बोलने से पहले सोचना चाहिए कि हमें किस परिस्थिति में क्या बोलना है…? मुंह से बिगड़े बोल निकलने के बाद उन्हें समेटना बहुत मुश्किल होता है! जिंदगी भर के लिए एक अभिशाप बन जाते है ये बिगड़े बोल!
शादी ब्याह हो या शोक सभा हो इनकी अपनी अलग अलग गरिमा होती है! सही शब्दों का चयन होना चाहिए ताकि सामने वाला सुकून महसूस करें! हम चाहते हैं कि हमारी बात सामने वाला अच्छी तरह से सुने तो हमें इसके लिए भी तैयार होना पडेगा कि हम पहले सामने वाले की पूरी बात ध्यान से सुने! अच्छा सुनने वाला ही अच्छा समझाने वाला व्यक्ति और एक अच्छा समझाने वाला वक्ता बन सकता है! यह बात समाज में परिवार में घर में हर रिश्ते में लागू होती है! आजकल हर व्यक्ति घमंड और अहंकार से इतना भरा हुआ है कि वह सब कुछ सुनाना चाहता है लेकिन, कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं रहता है!
कुछ लोग प्रवचन को भी मजबूरी में सुनते हैं! हमारा व्यवहार तय करता है कि हम से कैसे लोग जुड़ेंगे! हम तय नहीं कर सकते! हमारा दुर्व्यवहार सभी लोगों से रिश्ते तोड देगा और हमारे जीवन को नीरस बना देगा! किसीसे रिश्ते तोडने से पहले सामंजस्य बैठाने की कोशिश करनी चाहिए, समभाव बैठाने की कोशिश करनी चाहिए! सामंजस्य ना बैठे तो भी किसीसे भी लड झगड कर अलग नही होना चाहिए! रिश्तो को हमेशा “जय जिनेंद्र” कहकर जीवंत रखने की परिस्थिति होनी चाहिए, कोशिश करनी चाहिए!