चेन्नई. सोमवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने किलपाक में शांतिलाल मनोजकुमार मूथा के निवास पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि समय कब आएगा यह पता नहीं और समझ कब आएगी यह भी पता नहीं है। समय अपने हाथ में नहीं है लेकिन समझ अपने हाथों में है। जिन्होंने समझ पर कंट्रोल कर लिया उनका समय सार्थक बन गया। जो समझ में परे रहे वे तीर्थंकर प्रभु से दीक्षा, साधना भी ली और देवलोक में भी चले गए फिर भी उनके काम कुछ भी नहीं आया।
जब भरत चक्रवर्ती अपने भाईयों को अपने आधीन होने के लिए प्रयास करता है तो सभी मिलकर भगवान ऋषभदेव के पास जाते हैं। परमात्मा कहते हैं कि इस सत्ता और संपत्ति के लिए अपना जीवन व्यर्थ मत गंवाओ। भरत चक्रवर्ती है और उसकी बात सभी को माननी ही होगी तथा अपनी जिद छोड़कर उसके अनुसार चलना ही पड़ेगा। उनके पास दो ही विकल्प थे– या तो सत्ता की मानो या सत्य की मानो। परमात्मा के सभी 18 पुत्रों ने धर्म को चुनकर सत्ता छोड़ी और मोक्ष प्राप्त किया। लेकिन बाहुबली में भरत के सामने खड़ा रहने की ताकत थी और उसने भरत की बात नहीं मानी। लेकिन बाहुबली भरत से युद्ध में जीतने के समय में अपनी जिद छोड़ धर्म का मार्ग चुनता है। जिस जीत को पाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी और एक कदम दूरी पर उस जीत को भी तुच्छ समझकर धर्म अपनाया। उसने युद्ध भूमि में भी सकारात्मक निर्णय लिया।
अपने गुस्से को रोको मत बल्कि उसे प्यार में बदलो, यह संभव है। मौत को रोकना संभव नहीं बल्कि उसे बदलना संभव है। बाहुबली ने उस पर स्वयं को चेंज किया जिस पल किसी को उसके बदलने की उम्मीद ही नहीं थी। उसी प्रकार का प्रसंग हम सभी के साथ होता है। जहां पर हम अकड़ जाते हैं, वहां पर झुकना ही पड़ता है।
जो बाहुबली पहले परमात्मा के पास नहीं जाता है, उसे अपने छोटे भाईयों का भी अनुकरण और नमन करना पड़ता है। हम सभी को अपने स्वजनों के सामने झुकने में अहंकार और आपत्ति होती है लेकिन परायों के सामने हम नतमस्तक हो जाते हैं। जिंदगी में सिद्धि को बरसने के लिए नम्रता पहली शर्त है। बादल बनते हैं लेकिन बरसते नहीं इसलिए कि उसका वातवरण नहीं मिलता। हमारे जीवन में ऐसी ही सिद्धियां बरसना चाहती है लेकिन इसलिए नहीं बरसती कि एक कदम आपका नहीं उठता है।
धर्मस्थानों की अनेकों यात्राएं कर सकते हो लेकिन अपने जीवन में शत्रु से मिलने को एक कदम नहीं उठा सकते। जो झुकने की तैयारी करता है उसे झुकना नहीं पड़ता और जो झुकने की तैयारी नहीं करता उसे मजबूरी में झुकना ही पड़ता है। बाहुबली के झुकने की सारी संभावनाएं समाप्त हो गई मात्र अपने ही विचार के कारण। बाहुबली ने एक कदम उठाया तो वहीं से भगवान बन गया। झुकने के लिए चलें, मानसिकता बनाए रखें। जिस पल झुकने के लिए चलोगे उस पल झुकना नहीं पड़ेगा। इस रास्ते पर बेईमानी काम नहीं आती है, केवल ईमानदारी ही काम आती है। दुनिया में बेईमानी से जीत सकते हो लेकिन धर्म के रास्ते पर नहीं। इससे शांति नहीं मिलती। यह समझ आ जाए तो कल्याण हो जाए। जो चाहे बना जा सकता है। सभी स्वजन गंवाने और हारने की शत प्रतिशत संभावना के बाद भी नहीं झुकता है वह दुर्योधन बनता है। परमात्मा महावीर ने जिसे तीर्थ कहा है उसके आंगन में जाने में तीर्थ यात्रा का अनुभव होता है। श्रद्धा का रिश्ता द्विपक्षीय होता है।
बाहर तो मजबूरी में झुकते हो लेकिन घर में स्वजनों के आगे जरूर झुकें। जो अपनों के सामने झुका वह मंजिल पर अवश्य पहुंचाता है।