चेन्नई. अयनावरम जैन भवन में विराजित साध्वी नेहाश्री ने कहा जिनका जीवन जागृत होता है उनका जीवन ही श्रेष्ठ है। जिस प्रकार गर्मी के मौसम में पतले कपड़े और सर्दियो में मोटे और गर्म कपड़े पहकर स्वास्थ्य के प्रति सावधानी बरती जाती है उसी प्रकार धर्म के मार्ग में आत्मा के प्रति भी सावधान रहना चाहिए।
जिनवाणी के शब्द हैं द्रव्य क्षण, क्षेत्र क्षण, काल क्षण और भाव क्षण। जीवन की गाड़ी को धर्म क्षेत्र में आगे बढाना तथा पाप के क्षेत्र में नहीं लगाना द्रव्य क्षण है।
क्षेत्र क्षण का वर्णन करते हुए कहा, जहां जन्म लिया और जहां तीर्थंकर साधु-साध्वी विचरण करते हैं वह आर्य क्षेत्र है। आर्य क्षेत्र में पूर्वजों में धर्म संस्कार आए और उनमें से हमको भी संस्कार मिले। हमारे संस्कार आर्य संस्कार हैं।
धर्म-कर्म समझना इसी क्षेत्र के प्रतिफल हैं। आद्रकुमार का जन्म अनार्य क्षेत्र में हुआ लेकिन अभयकुमार ने धर्म की ऐसी गिफ्ट भेजी कि वहां पर भी जाति स्मरण हो गया और मोक्ष मार्ग को प्राप्त हुए।