चेन्नई. वेेपेरी स्थिति जयवाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने सच्चे श्रावक अच्छे श्रावक प्रवचन माला के अंतर्गत श्रावक के 21 गुणों में से एक गुण लज्जावान को परिभाषित करते हुए कहा जो लज्जामान होता है वह हमेशा सदाचारी, मर्यादित होता है और व्रतों में दृढ़ रहता है।
लज्जा का स्थान आंखों में बताया गया है। लाज सुधारे काज कहावत यह सिद्ध करती है कि बिगड़ा हुआ काम भी लज्जा से सुधर जाता है। जो पापभीरु होते हैं वे ही लज्जावान होते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो दिन में ऐसा काम करते हैं जिससे रात की नींद हराम हो जाय और न ही रात में ऐसा काम करते हैं जिससे दिन में मुंह छिपाना पड़े।
यदि घर में शांति चाहिए तो मर्यादा जरूरी है। पुत्र को पिता, पत्नी को पति, छोटे को बड़े के प्रति मर्यादा का खयाल रखना चाहिए। यदि समुद्र अपनी सीमा लांघ दे, नदी अपना रास्ता बदल दे, कोई देश सीमा का उल्लंघन कर दे तो परिस्थितियां संकटमय हो जाती है, घमासान छिड़ जाता है। मर्यादा का पालन हर क्षेत्र में होना चाहिए।
अत: मनुष्य को मर्यादा एवं लज्जावान का गुण जीवन में धारण करना चाहिए ताकि उसका दुर्लभ मानव जीवन शाश्वत सुखों की प्राप्ति के लक्ष्य से वंचित न हो।
मुनिवृंद के सानिध्य में 11 अगस्त को आचार्य शुभचन्द्र का 81वां जन्मदिवस सामूहिक भिक्षु दया और सामायिक तेले के साथ मनाया जायेगा।