चेन्नई. मंगलवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने वेपेरी में सुवालाल, महावीर करनावट के संपत निवास पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि आप डिस्टर्ब होना पसंद नहीं करते लेकिन दूसरों को डिस्टर्ब करना पसंद करते रहते हैं। जब दूसरों को डिस्टर्ब करेंगे तो वे हो या न हो लेकिन आप स्वयं पक्के डिस्टर्ब हो जाओगे। अर्जुनमाली ने परमात्मा से सीख लिया था कि डिस्र्बन नहीं होना।
उसको बहुत लोगों ने डिस्टर्ब किया और वह नहीं हुआ लेकिन जिन्होंने उसे डिस्टर्ब किया था वे स्वयं डिस्टर्ब हो गए। चंडकोशिक ने तय कर लिया था कि मुझे परेशान नहीं होना है, कितनी ही चींटिया आई लेकिन उसे परेशान नहीं कर पाई। कोई हमें परेशान नहीं कर सकता बल्कि हम स्वयं परेशान हो जाते हैं। सामने वाला आपको परेशान जरूर करेगा लेकिन यह अपना स्वयं का निर्णय है।
पशुओं के तो चलने से धूल उड़ती है लेकिन हमारे तो जीने, बोलने और देखने से भी धूल उड़ती है। परमात्मा तीर्थंकर महावीर जब चलते हैं तो उनके चरणों के निशान भी जमीन पर नहीं होते हैं। उनके जितना शरीर न बना सको तो अपना मत तो हम हल्का बना ही सकते हैं। जितना हल्का बनेंगे उजाला बनेंगे और भारी बनेंगे तो अंधियारा बन जाओगे।
इंद्रभूति गौतम ने परमात्मा से पूछा था कि कैसी आत्मा भारी होती है और कैसी हल्की होती है। परमात्मा कहते हैं कि जो हल्की होगी उसके जीवन में उजाला होग नहीं तो अंधियारा होगा। जो जिससे प्यार करता है वही उसके पास रहता है। उजाले से प्यार करोगे तो वह आपके पास अवश्य आएगा।
भगवान महावीर चंदनबाला के पास स्वयं पहुंचे। इसके लिए उन्हें तपस्या भी करनी पड़ी। उन्हें हर व्यक्ति आहार प्रेम और भक्ति से देना चाहता था फिर भी परमात्मा ने तय कर रखा था चंदनबाला से ही आहार ग्रहण करने का। आपको भी अपने घरवालों से इसी प्रकार प्रेम करना चाहिए।
जब अन्तर में भक्ति का उजाला होता है तो चंदनबाला की तरह अंधेरी काल-कोठरी में डालने पर भी प्रकाशमान रहता है। जिसने एक बार उस उजाले के साथ दोस्ती कर ली, वो नरक में भी जाए तो उसके मन में राजा श्रेणिक के समान अंधियारा और नकारात्मकता नहीं आ सकती।
आप अपने स्वजनों से जख्मी होते हो और स्वजनों को जख्मी भी करते हो। अपनों का दुश्मन कभी मत बनो। जब आपसे प्यार करने वाले आपके साथ रहकर खुश नहीं रह सकते तो इससे बड़ी नादानी क्या होगी। आप दुश्मन को आप दु:ख दे सकते हैं लेकिन अपने मदद और सपोर्ट करने वाले स्नेहीजन, जिनके बिना आप जीवित नहीं रह सकते उसको दु:ख और कष्ट देना कहां उचित है। रिश्ता डेवलप करने का होना चाहिए, न कि डिस्टर्ब करने का।
जहां कहीं भी रहो, समाधान बनकर रहो, समस्या बनकर मत रहो। अपने परिवार के साथ रहते हुए तो यह निश्चय अवश्य कर लें। राजनीति में केवल वादे चलते हैं और धर्मसभा में वचनबद्धता और कमिटमेंट से चलते हैं। अपने वचन को जिंदा रखने की जिम्मेदारी आप स्वयं पर है दूसरों पर नहीं।