पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा जन्म, मरण और जीवन तीनों एक दूसरे के पूरक हैं। परमात्मा के गणधर पहले दीक्षा लेते हैं व धर्म ग्रहण करते हैं फिर परमात्मा से अपने सवाल पूछकर जिज्ञासाएं प्रकट करते हैं। अत: पहले धर्म को जाने बिना ग्रहण करें।
परमात्मा का ज्ञान प्राप्त हो जाए तो आर्त और रौद्र ध्यान कभी नहीं होगा, जीवन में शांति और दु:खों का नाश होता है। जब बीज मरता है तो ही पौधा जन्मेगा। यही जीवन-मरण का सत्य है।
गौरवमय जीवन जीने का एकमात्र सूत्र सरलता है। जो मन, वचन, कर्म से समान होता है वही जीवन में सकारात्मक व सरल होता है। जीवन से जैसे-जैसे सरलता गायब होती है अशुभ का बंध होता जाता है।
पारिवारिक रिश्तों में पारदर्शिता होनी चाहिए। किसी से भी छल-कपट और द्वेष न करें। सरल बनने का उद्देश्य भी केवल संसार में दिखावा नहीं बल्कि सफलता, शांति और स्वयं सिद्ध बनना होना चाहिए। बंधनों को तोडऩे के लिए साधना करें न कि बंधनों का सुख प्राप्त करने के लिए। हर समय एक ही लक्ष्य हो, सिद्धत्व को प्राप्त करना, इसे नहीं भूलना चाहिए।
उन्होंने कहा अपनी क्षमताओं और शक्ति को छिपाएं नहीं बल्कि उजागर करें। जो स्वयं का सामथ्र्य नहीं छिपाता वह अपकाय की हिंसा नहीं कर सकता। कभी भी सत्य का दामन ना छोड़ें।
मुनि तीर्थेशऋषि ने बताया कि सज्जनों का कुछ पल का संग भी जीवन से अंधकार और संताप मिटा देता है। चन्द्रमा और चन्दन से भी शीतल संतों की संगत है। परमात्मा के ज्ञान के रहस्यों को यदि जानना है तो संतों के पास जाना चाहिए।
धर्मसभा में तपस्वियों का चातुर्मास समिति द्वारा सम्मान किया गया।