Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम के संदेश को जीवन में अपनाएं: साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम के संदेश को जीवन में अपनाएं: साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

बेंगलूरु। यहां वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में विश्वविख्यात अनुष्ठान आराधिका, ज्योतिष चंद्रिका एवं शासन सिंहनी साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी ने शुक्रवार को जन्माष्टमी पर्व के मद्देनजर भगवान श्रीकृष्ण को भावी तीर्थंकर बताते हुए कहा कि हमें उनके जीवन से प्रेम, वात्सल्य एवं करुणा का भाव सीखनी चाहिए, कटुता मिटानी चाहिए तथा उनके जीवन के संदेश को सार्थकता के साथ अपनाना चाहिए। जन्माष्टमी के अवसर पर संकल्पित होना चाहिए कि हम अपने जीवन में न्याय, नीति व अच्छाइयों को अपनाएं व बुराईयों तथा अन्याय का त्याग करें।

कार्यक्रम में राज्य सरकार में काबिना मंत्री एस सुरेश कुमार ने बतौर अतिथि शिरकत करते हुए साध्वीवृंद के समक्ष शीश नवाकर आशीर्वाद लिया। इस मौके पर उन्होंने अपने संक्षिप्त संबोधन में जैन समाज को भगवान श्रीकृष्ण की उपमा देते हुए स्वयं को सुदामा उद्बोधित किया। काबिना मंत्री ने ‘कृष्ण वंदे जगद्गुरुम्’ मंत्र को भी गूंजायमान किया। गुरु दिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में साध्वीवृंद की निश्रा में पदाधिकारियों में धर्मेंद्र मरलेचा, पन्नालाल कोठारी, चेतन दरड़ा, गुलाबचंद पगारिया, नथमल मूथा, रतन सिंघी, रमेश सिसोदिया, निर्मल चोरड़िया, राजेश गोलेच्छा व महेंद्र टोडरवाल आदि ने मंत्री सुरेश कुमार का सत्कार भी किया गया। इस अवसर पर साध्वीश्री ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के गुणों का अनुकरण करके व्यक्ति उर्जा, बुद्धि, शक्ति और आत्मविश्वास प्राप्त कर सकता है।

उन्होंने कहा कि दुख और सुख के क्षणों में भी उनकी बुद्धि स्थिर रहती है। यदि मनुष्य इस स्थिरता को प्राप्त कर सके तो जीवन से क्लेश और पीड़ा का अंत हो सकता है। साध्वीश्री ने कहा कि हर व्यक्ति के साथ पुरुषार्थ का खेल भी चलता है, श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता से जुड़े एक प्रसंग का उल्लेख करते हुए डाॅ.कुमुदलताजी ने कहा कि भूत, भविष्य और वर्तमान अर्थात् तीनों कालों मेें जिसे श्रद्धा से नमन-वंदन किया जाएगा वे भगवान श्रीकृष्ण ही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि महापुरुष तो खूब हुए हैं लेकिन श्रीकृष्ण जगद्गुरु हैं।

सुख-शांति व समृद्धि की प्राप्ति एवं जीवन जीने की कला के पावन उद्देश्यों का जिक्र करते हुए डाॅ.कुमुदलताजी ने नियम, व्रत एवं पच्चखान लेने वाले श्रद्धालुओं को बगैर वैर-भाव व रागद्वेष के सकारात्मक सोच के साथ प्रेक्टिकल लाईफ जीने की भी सीख दी। इससे पूर्व साध्वीश्री महाप्रज्ञाजी ने भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े अनेक भजनों-गीतिकाओं की प्रस्तुतियां दी। उन्होंने कहा कि व्यक्ति के लिए जिनवाणी का महत्व शरीर में श्वांसों के महत्व के समान है।

आत्मा के बिना इस शरीर का भी महत्व नहीं है अर्थात् आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए चातुर्मासिक पर्व में धर्म, ध्यान, तप व आराधनाओं का महत्व बताया गया है। साध्वीश्री डाॅ.पद्मकीर्तिजी व राजकीर्तिजी ने भी भजन व स्तवन सुनाए। धर्मसभा का संचालन समिति के महामंत्री चेतन दरड़ा ने किया। उन्होंने बताया कि धर्मसभा में चेन्नई व चित्तोड़ से तथा शहर के विभिन्न उपनगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया। साध्वीवृंद की प्रेरणा से विभिन्न प्रकार की तपस्याएं करने वाले श्रद्धालुओं को पच्चखान कराए गए व उनका सम्मान भी किया गया।

शुक्रवार पद्मावती एकासना के तहत अनेक लोगों ने सामूहिक रुप से भाग लिया। चेतन दरड़ा ने बताया कि 25 अगस्त से युवा समिति के तत्वावधान में होने वाले भिक्षु दया कार्यक्रम में लक्की ड्रा के माध्यम से स्वर्ण सिक्के प्रदान किए जाएंगे। समिति के वरिष्ठ उपाध्यक्ष नथमल मूथा ने बताया कि 27 अगस्त से शुरु होने वाले पर्वाधिराज पर्युषण पर्व में विविध धार्मिक आयोजनों के लिए समिति द्वारा व्यापक स्तर पर तैयारियां कर ली गई हैं।

मूथा ने बताया कि जयजिनेंद्र प्रतियोगिता के विजेताओं में क्रमशः रितु बोहरा, प्रियंका बाफना व मोहनलाल पोरवाल को पुरस्कृत किया गया। ज्ञानचंद मूथा ने सभी का आभार ज्ञापित किया।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar