चेन्नई. हेरिंगटन रोड स्थित जैन ग्रुप्स के प्रांगण प्रवचन में जयधुरंधर मुनि ने कहा व्यक्ति का जैसा भाव होता है उसके अनुरूप ही सामने वाले पर उसका प्रभाव पड़ता है। जिस प्रकार गुफा में की गई ध्वनि की वैसे ही प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है, उसी प्रकार जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है।
उन्होंने कहा प्रभु का वास शुभ भावना में होता है जबकि अशुभ विचार शैतान का घर है। व्यक्ति को लगता है कुछ भी सोचा क्या फर्क पड़ता है, किसी को पता ही नहीं चलता परंतु आज विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि टेलीपैथी के माध्यम से व्यक्ति के भाव सामने वाले तक पहुंच जाते हैं। जिस प्रकार दर्पण चेहरे का प्रतिबिंब होता है उसी प्रकार चेहरा स्वयं व्यक्ति के भावों का प्रतिबिंब होता है।
किसी को शत्रु या मित्र बनाना यह स्वयं पर निर्भर करता है। यदि शत्रु के प्रति भी शत्रुता का व्यवहार न करते हुए मैत्री भाव रखें तो वह भी मित्र बन सकता है । इसीलिए भगवान महावीर ने सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव रखने का उपदेश दिया है। व्यक्ति यदि स्वयं भला है तो उसके लिए जग भी भला है। जगत को दोष देने के बजाय खुद की दृष्टि में परिवर्तन लाना चाहिए।
इसके पूर्व समणी श्रुतनिधि ने कहा सकारात्मक विचार सफलता की जननी है जबकि नकारात्मक विचारों से हर क्षेत्र में बाधा उत्पन्न होती है। व्यक्ति स्वयं अपने भावों के कारण दुखी बन जाता है। कल्पना सबसे बड़ा दुख है।
दूसरों में बुराई देखने की बजाय उनके गुणों को देखकर अपनाना चाहिए। जो दूसरों में गुण देखता है व स्वयं भी गुणवान बन जाता है। मुनिवृंद यहां से विहार कर थाउजेंड लाइट पहुंचेेंगे ।