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ज्ञान वाणी

छुआछूत मानना-अपनाना शर्मनाक: राष्ट्रसंत कमल

छुआछूत मानना-अपनाना शर्मनाक: राष्ट्रसंत कमल

महावीर सदन में जैन दिवाकर विचार मंच युवा शाखा अधिवेशन

कोलकाता. छुआछूत को मानना-अपनाना शर्मनाक है और यह साक्षात परमात्मा का अपमान करने के समान है। मानव की शारीरिक रचना समान है, सभी के शरीर में खून लाल है और जन्म के समय किसी के सिर पर कोई जाति नहीं लिखी होती। मानव जाति एक है लेकिन किसी कुल में जन्म लेने मात्र से किसी को हीन अथवा किसी को महान मान लेना घोर अज्ञानता का प्रतीक है।

राष्ट्रसंत कमल मुनि कमलेश ने महावीर सदन में अखिल भारतीय जैन दिवाकर विचार मंच नई दिल्ली युवा शाखा के अधिवेशन को संबोधित करते हुए शनिवार को यह उद्गार व्यक्त किए। अधिवेशन के दौरान युवाओं ने जाति से ऊपर उठकर मानवता का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि मानव जन्म से नहीं कर्म से महान होता है।

मुनि ने वर्ण व्यवस्था परंपरा पर कहा कि चारों ही वर्ण हमारे अंदर छिपे हुए हैं। जब शरीर की सफाई करते हैं तब शूद्र हैं, लेनदेन करते समय वणिक, रक्षा के लिए क्षत्रिय और साधना में लीन होते हुए ब्राह्मण हैं। वर्ण व्यवस्था के आधार पर भेदभाव करना निकृष्ट पाप है।

किसी भी भगवान की उपासना के लिए किसी मानव को रोकना साक्षात परमात्मा का बहिष्कार करने जैसा है। जातिवाद का जहर अणु बम-परमाणु बम से भी घातक है। उन्होंने कहा कि आजादी के 70 वर्षों बाद भी 21वीं सदी में जातिवाद फैलाने के लिए स्वार्थी नेता धर्म और देश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

चुनाव आयोग को ऐसे दलों की मान्यता रद्द कर देनी चाहिए जो जातिवाद भड़काकर कुर्सी हथियाने में रहते हैं। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध ने संपूर्ण मानव समाज को समान प्यार और समान अधिकार की वकालत की। दिवाकर मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष जैन ने कहा कि जातिवाद के कीटाणु राष्ट्रीय एकता को खोखला कर रहे हैं और ऐसे असामाजिक तत्वों के खिलाफ सबको मिलकर मोर्चा खोलने का संकल्प होगा।

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राकेश कोठारी ने कहा कि मानवीय रिश्तों को मजबूत करना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। महावीर जैन, बसंतीलाल जैन, महेंद्र जैन, अजीत खटोड़, मनीष जैन, दिलीप ओरा ने भी विचार व्यक्त किए। दिवाकर मंच की युवा शाखा ने 21 राज्यों के अध्यक्षों को मनोनीत किया।

महावीर सदन साउथ संघ की ओर से मनोज मेहता, घेवरचंद कांकरिया, संदीप जैन, बछराज बाघमार, प्रकाश भंडारी ने स्वागत किया। कौशल मुनि ने मंगलाचरण और घनश्याम मुनि ने विचार व्यक्त किए।

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