सूरत. श्रीसोमोलाई बालाजी मंडल के रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष में आयोजित नानीबाई रो मायरो के तीसरे दिन रविवार को श्रद्धालुओं की भीड़ के समक्ष पंडाल छोटा पड़ गया।
वहीं, मायरो कार्यक्रम के तीसरे व अंतिम दिन भगवान श्रीकृष्ण ने महारानी रुकमणि के संग नानीबाई का छप्पन करोड़ का मायरा भरा और पंडाल हर्षध्वनि से गूंज उठा। इस अवसर पर कार्यक्रम में सहयोगियों का सम्मान भी आयोजक मंडल ने मंच पर बुलाकर किया।
तीन दिवसीय नानीबाई रो मायरो के अंतिम दिन रविवार शाम व्यासपीठ से बालव्यास जयाकिशोरी ने कीर्तन से कथा की शुरुआत की और बाद में बताया कि मायरा भरने पहुंचे भगत नरसी मेहता एवं संत टोली को देखकर ससुरालजनों ने जमकर ताने मारे और बेटी नानी को उलाहने दिए।
तब नानीबाई ने पिता नरसीजी के सामने रुंधे गले से गाकर भजन आधारित नृत्यनाटिका के माध्यम से पूछा कि थे तो केवो बाबाजी सांची-सांची वात, थारो सांवरियो कद आसी…तब नरसीजी ने नानीबाई को कहा कि मेरी भक्ति निस्वार्थ भक्ति है और मेरा सांवरिया नहीं आएगा तो भी मेरी भक्ति यूं ही रहेगी।
पिता व पुत्री के संबंध में व्यासपीठ ने बताया कि बेटी का पिता के प्रति विशेष प्रेम होता है और अभिभावकों को भी बेटे के समान ही बेटियों को महत्व देना चाहिए। वर्तमान में हो रही भ्रूणहत्या महापाप है। जिस घर में नारी का सम्मान नहीं होता वह घर-घर नहीं होता है। उधर, कथा में बाद में तालाब की पाल पहुंची दुखी नानीबाई को शगुन की खबर बीरा के आगमन के रूप में मिली और वो दौड़ी-दौड़ी रंगमहल पहुंची और सबको हर्षविभोर होकर बोली मेरा भाई आ रहा है…मेरा भाई आ रहा है…।
बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने नानीबाई का छप्पन करोड़ का मायरा भरा। इस मौके पर आयोजक मंडल समेत अन्य संगठनों की ओर से गो सेवार्थ एवं विद्यालय सहयोगार्थ मायरा के रूप में सहयोग राशि व सामग्री भेंट में दी गई।
व्यारा से आए विद्यालय के बालक
श्रीसोमोलाई बालाजी मंडल के विभिन्न सहयोगी संगठनों की ओर से संचालित कामरेज के निकट श्रीसोमोलाई हनुमान गोशाला व व्यारा कस्बे क पास श्रीसोमोलाई हनुमान विद्या विहार के सेवार्थ यह आयोजन रखा गया। मायरो कार्यक्रम के अंतिम दिन रविवार को श्रीसोमोलाई हनुमान विद्या विहार के बालक व शिक्षिकाएं भी मौजूद रहे। इस अवसर पर बच्चों ने आकर्षक धार्मिक व देशभक्ति गीत-नृत्य की प्रस्तुति दी।
मां से बड़ा भगवान भी नहीं
नानीबाई रो मायरो के समापन दिवस के मौके पर व्यासपीठ से वक्ता ने बताया कि मां इस संसार में सबसे दुर्लभ है और मां की ममता से बड़ा कोई भाव नही है। भगवान ने भी विचार किया कि वे हर जीव के पास नहीं पहुंच सकते तो उन्होंने मां की रचना कर दी। मां का अपमान ईश्वर का अपमान है। वे बहुत भाग्यशाली है जिन्हें मां की ममता, प्यार व आशीर्वाद मिलता है।
पंडाल में नहीं रही जगह
नानीबाई रो मायरो के अंतिम दिन श्रद्धालुओं की उपस्थिति अपेक्षा मुताबिक रही। आयोजक मंडल व सहयोगी संस्थाओं ने अपेक्षाकृत भीड़ को ध्यान में रख पहले ही समुचित व्यवस्था की थी और उसके अनुरूप एक्सट्रा एलईडी स्क्रीन, बैठक क्षमता का विस्तार, अतिरिक्त कुर्सी-सोफे श्रीसोमोलाई सेवाधाम में रखवाए थे। आयोजकों की उम्मीद के मुताबिक ही रविवार को श्रद्धालुओं की भीड़ से पंडाल खचाखच भरा रहा।