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ज्ञान वाणी

चैरिटी का मतलब है खुशियां और आशीर्वाद खरीदना: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चैरिटी का मतलब है खुशियां और आशीर्वाद खरीदना: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. शनिवार को साहुकारपेट में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने कहा कि धर्म की दुकान एक ऐसी दुकान है जिसके बिना कोई मार्केट की दुकान नहीं चल सकती। बाकी मार्केट कम्पीटिशन करते हैं लेकिन भगवान महावीर का मार्केट सहयोग और सपोर्ट करता है। इसलिए भगवन महावीर का मार्केट कहीं भी चल सकता है। इसकी विशेषता है कि जिसके पास भी यह रहा वो नीति के वाक्य को भी समाप्त कर देता है कि लक्ष्मी सात पीढ़ी के आगे नहीं चलती।

फैमिली बिजनेस मैनेजमेंट में कई कंपनीया 200 सालों से चल रही हैं। इसका एक ही कारण है कि उनके साथ चैरिटी (दान) जुड़ा रहा है। जिस परिवार, संघ, समाज में चैरिटी नहीं रही वह रेगिस्तान बन गया। पूजा-पाठ के बिना काम चल सकता है, मंदिर, संत वंदन , माला के बिना भी जी सकते हो लेकिन परमात्मा प्रभु ने जो धर्म दिया है उसका वह पहला सूत्र है- दान होगा तो ही आप आगे बढ़़ पाओगे।

इसका एक अध्यात्म और विज्ञान भी है कि जिस समय व्यक्ति दान करता है, उस समय कई लोगों की सद्भावनाओं के सकारात्मक वाइब्रेशन वह प्राप्त करता है। जब स्वयं के लिए खरीदते हो तो पैसे देकर वस्तु मिलती है, जब वस्तु नहीं लेते हो तो आशीर्वाद मिलता है, यही चैरिटी और दान कहलाता है। चैरिटी का मतलब- खुशियां और आशीर्वाद खरीदना है।

जो किसी भूखे-प्यासे को दो हाथों से देता है, वह हजार हाथों से पाता है। दान जब पुन: लौटकर आता है तो वे देनेवाले हाथ नजर नहीं आते।

किसी को आबाद करके ही दुआ ले सकते हो, किसी को बर्बाद करके नहीं। जिसके पास दुआ होती है उसको बद्दुआ लगती ही नहीं और जिसके पास पहले से बद्दुआ होती है, उसको दुआ असर करती नहीं। यही आयुर्वेद और धर्म कहता है। जो पहले ग्रहण किया उसी के अनुसार सारा ग्रहण किया हुआ बदलता जाता है। जीवन जीने का आनन्द उसी ने लिया जिसने भूखे को खिलाकर खाया।

जीवन का पहला सूत्र है- जीवन में धर्म आने का पहला सूत्र है चैरिटी या दान। तुम किसी का दु:ख दूर करोगे तो परमात्मा भी तुम्हारा दु:ख दूर करेंगे। नहीं तुम्हारे दु:ख परमात्मा भी दूर नहीं करेंगे।

अपने घरों में हमें इस परंपरा को शुरू करना चाहिए कि अपने नाश्ता करने से पहले बड़े-बुजुर्गों को खिलाना, दूकान में आने पर पहले अपने नौकर को खिलाना। यही दान है और यही धर्म सीखाता है। जब तक किसी के दु:ख के साथ रिश्ता जुड़ता है, धर्म शुरू होता है।

जो व्यक्ति आदमी की पूजा नहीं करता, उसका पूजा-पाठ व्यर्थ है। दान को व्यवसाय, परिवार, बाहर सभी जगह किया जा सकता है। धर्म जब जीवन का श्वास बनता है तो जिंदा रखता है। भगवान को खुशबू अर्पण करने से पहले किसी के जीवन को सुगंधित करो। अपने व्यवसाय को चैरिटी के साथ शुरू करते हो तो तुम्हें कोई भी दशा और राहु बिगाड़ नहीं सकता। आप जीवन में जिसके साथ रिश्ता रखेंगे वही आपके जीवन में आएगा।

जीवन का दूसरा सूत्र है- चरित्र या नेचर। अपना नेचर गुड रखेंगे तो गोड भी चलकर स्वयं आ जाएगा और आपका नेचर खराब है तो आता हुआ भगवान भी पुन: लौटकर चला जाएगा। यदि आप चाहते हो कि टेंशन न हो, नींद हराम हो तो सोते समय उन्हें याद कीजिए जिन्होंने आपकी मदद की है। उन्हें मत याद कीजिए जिन्होंने आपकी मदद नहीं की। यही कृतज्ञता और धन्यवाद का अपना नियम बना लो कि भगवान को याद करें न करें पर अपने सहयोगी को याद जरूर करें। उसे भूलकर भक्ति करोगे तो काम नहीं आएगी।

तीसरा धर्म का सूत्र है- पेशन्स और धीरज रखनेवाला कभी पेशेन्ट होता नहीं है। धीरज को तप कहते हैं। यह जिसके जीवन और व्यापार में आ गया उसका तो जीवन बदल जाएगा। खाना खाते समय धीरज रखें, मोबाइल को पास न रखें, खाने को आनन्द से खाएं, जल्दीबाजी में नहीं। जो खाना चबाकर के खाते हैं उन्हें तीन बीमारियां नहीं होती- डायबिटीज, एसिटडीटी और अपच। इसलिए कहते हैं कि भोजन ही पूजा है।

चौथ सूत्र है नो-कमेंट। भोजन में कुछ भी कमी है तो उसे तिरस्कार न करें। जो थाली में आया है उसे ही अपना मनपसंद कर लें।

कोई भी रिश्ता हो अपने भाव अच्छे रखोगे तो ही आपको प्रोफिट होगा। मार्केट के भावों के साथ अपने स्वयं के भाव भी अच्छे रख लोगे तो अलग से धर्म करने की जरूरत नहीं होगी, भावों से ही भाग्य का जन्म होता है। जिसका भावों पर कंट्रोल नहीं उसका भाग्य पर भी कंट्रोल नहीं रहता।

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