चेन्नई. ताम्बरम विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा की व्यक्ति का चिंतन दो प्रकार के होते है। हम अपने बारे में क्या चाहते है वह पहला पक्ष है और दुसरो के बारे क्या चाहते है वह दूसरा पक्ष है लोग हमेशा अपने बारे में सोचते है।
मेरा भला कैसे हो दुसरो के बारे में बहुत कम लोग सोचते है। मनुष्य का जीवन तभी सफल है जब वह अभिमान त्याग कर सभी जीवो के सुख के बारे में सोचे संसार जितना सुन्दर दीखता है। हम अपनी आत्मा को साधना के माध्यम से उतना ही सुन्दर बना सकते है।
कोई आपसे प्रेम, ईर्ष्या, घृणा व भेदभाव करे उससे भी प्राणी को प्यार करना चाहिए। सुख दो प्रकार के होते है। एक इंद्री जन्य तो दूसरा आत्मिक जन्य इन्द्रियों का सुख सच्चा सुख नहीं है और आत्मिक सुख अविनाशी है।