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ज्ञान वाणी

चारित्र की सम्यक् आराधना के लिए ज्ञानाराधना जरूरी: आचार्य महाश्रमण

चारित्र की सम्यक् आराधना के लिए ज्ञानाराधना जरूरी: आचार्य महाश्रमण
*भिक्षु भक्ति संध्या से भिक्षुमय बना जैन तेरापंथ नगर
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि धर्माराधना के दो प्रकार श्रुत धर्माराधना और चारित्र धर्माराधना हैं| श्रुत यानी ज्ञान की आराधना, ज्ञानाराधना के लिए स्वाध्याय करना जरूरी होता है| दशवैकालिक आगम के दसवें अध्ययन में कहा भी गया है “पढमम णाणं तऒ दया” पहले ज्ञानार्जन करो फिर आचरण करो|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि स्वाध्याय के पांच प्रकार बताए गए हैं – वाचना, प्रछना, पुनरावृति, अनुप्रेक्षा, और धर्मकथा| अच्छी पुस्तकों, आगमों का स्वाध्याय वाचना के अन्तर्गत आता है, जो पढ़ा है, उसमें जिज्ञासा, प्रति प्रश्न करना प्रछना के अंतर्गत आता है| जो पढ़ा है, उसका स्थिरिकरण के लिए पुनरावृत्तन करना, बार-बार पढ़ना| जो पढ़ा है उसमें अनुचिंतन करना -अनुप्रेक्षा|
जो पढ़ा है, अनुचिंतन करने के बाद उसे लोगों के बीच कथा करना, धर्म-कथा| श्रुत की आराधना के लिए इन पांचों प्रकार के स्वाध्याय को करना चाहिए, इस प्रकार श्रुत की आराधना करनी चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि  महाव्रत, बारह व्रत, अणुव्रत की साधना चारित्राराधना हैं| चारित्र की आराधना त्याग तपस्या से करनी चाहिए| पांच महाव्रत की सम्यक् अनुपालना करना साधुओं के लिए अनिवार्य माना गया है| *सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र की आराधना करने वाले के लिए मोक्ष नजदीक होता चला जाता है| श्रुत यानी ज्ञान और ज्ञान के बिना चारित्र की आराधना सम्यक् नहीं हो सकती है|
आचार्य श्री ने पावन प्रेरणा देते हुए कहा कि हम हमारे जीवन में श्रुत-ज्ञान की आराधना; चारित्र की आराधना सम्यक् करते चले जाते हैं, तो मोक्ष निकट होता चला जाएगा| हमें इन दोनों धर्माराधना करते हुए जीवन को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि *साधना से अस्थिर साधु, आचार्य को जो पुन: साधना के पथ में स्थिर करता है, वह अपने उपकारी के उपकार से उऋण हो सकता है| जहा साहस होता है, धैर्य होता है, वहा देवता भी सहायता करते हैं|*
   *आज से एक माह तक चलने वाली “भिक्षु स्मृति साधना एवं नमस्कार महामंत्र कोटी जप अनुष्ठान” के संभागीयों को परम पूज्य आचार्य प्रवर ने संकल्प दिलाते हुए मंगल पाथेय प्रदान किया|*
   *मासखमण तप की लगी झड़ी*
आचार्य श्री महाश्रमणजी के दक्षिण की धरा पर 50 वर्षों से मिले इस चातुर्मास में हर कोई अपने आराध्य की अभिवंदना में श्रद्धा सुमन समर्पित कर रहे हैं| कुछ ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय के द्वारा, तो *कई विरले पुरुष तप के द्वारा महातपस्वी का अभिनन्दन* कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं|
आज के प्रात:कालीन प्रवचन में *श्रद्धानिष्ठ श्रावक श्री जयचन्दलाल पुंगलिया ने 31, श्री कुशलराज सेठिया ने 32, श्री केवलचन्द नाभसेठिया ने 31, श्रीमती वन्दना एम भंसाली ने 31, श्रीमती श्रद्धा मेहता ने 29 की तपस्या* के रूप में इन पांचों ने मासखमण का प्रत्याख्यान आचार्य प्रवर के श्री मुख से किया|
चातुर्मास प्रारम्भ से अभी तक 16 मासखमण का प्रत्याख्यान हो चुका है तो श्री रणजीतकुमार नाभसेठिया ने 9 और *नन्ही 9 वर्षीय बालिका गरिमा वैद ने आठ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया तो मानो पुरा महाश्रमण समवसरण आश्चर्यचकित हो “ऊँ अर्हम्” की ध्वनि के साथ गुंजायमान हो गया|
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान की| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया|
 
       *भिक्षु भक्ति संध्या से भिक्षुमय बना जैन तेरापंथ नगर*
   ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आराधना के आराधकों की अनुमोदना में आयोजित “भिक्षु भक्ति संध्या” में मुम्बई की सुप्रसिद्ध संगायिका श्रीमती मीनाक्षी भूतोड़िया ने अपने सुमधुर कण्ठों से पुरे जैन तेरापंथ नगर को भिक्षुमय बना दिया|
  *पूर्व मंत्री श्री अंबमानी ने पाया पाथेय*
   पूर्व स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री श्री अंबमानी रामदास ने माधावरम् में चातुर्मास के लिए प्रवासित आचार्य श्री महाश्रमण के दर्शन, सेवा, उपासना कर मंगल पाथेय प्राप्त किया| चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचन्द लूंकड़ ने स्मृति चिन्ह प्रदान कर मंत्री का स्वागत किया|
  *✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

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