कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि सुबाहु कुमार ने गुरुकुल में विनय नम्रता के साथ ज्ञान सीखने की पिपासा ( इच्छा ) से थोड़े ही समय मे पढ़ाई पूर्ण करली 72 कलाओ में व राजनिति में साम दाम दंड भेद निति में निपुण हो गये गुरुकुल में रहते हुवे गुरु का व सभी का अपने व्यवहारों से दिल जीत लिया था पढ़ाई पूर्ण होने पर परीक्षाएं ली जाती परीक्षा लेने का अर्थ होता है जो पढ़ाई की है वह सिर्फ तोता रटंत तो नहीं है जो भी ज्ञान सीखे उसे अपने ह्रदय में उतारना चाहिये अर्थात आचरण में लाना चाहिये