कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आज तीसरे दिन महापर्व पर्युषण पर बोलते हुए कहा कि श्रावक को 8 बातों का पालन करना चाहिये।
*( 2 ) यथा शक्ति तप करना – अथार्त अगर आप में शक्ति है तो तपस्या करनी चाहिये।
किसी कारण से नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं ,परंतु तपस्या कर सकते हैं तो अवश्य करें नहीं तो तपस्या के चोर ( तपचोर ) कहलाते हैं।
( 3 ) अभयदान – जीवो को कसाई के हाथों से बचाकर के जीवनदान चाहिये।
( 4 ) सुपात्र दान अर्थात जब भी अवसर मिले अपने हाथों से सुपात्र दान देकर के अपने देय पदार्थ को अपने हाथों से देकर के कृतार्थ करें।
( 5 ) ब्रम्हचर्य का पालन – हमें जीवन में शील का पालन करना चाहिये ज्यादा से ज्यादा कम से कम बीज पंचमी अष्टमी ग्यारस चौदस अमावस पूनम इन दिनों में व्रत का पालन करना हमारी आत्मा के लिये अच्छा है।
धन्य है भर योवन में शील व्रत को पालने वाले विजय सेठ और विजया सेठानी, ( मुनिश्री ने पूरी कथा को संक्षेप में सुनाई ) केवली भगवान के कहने पर मुनि के पारणे एक तरफ – शीलव्रत धारी जोड़े को पारणा करा देने से ज्यादा लाभ बताया था सोचिये।
( 6 ) आरंभ समारम्भ का त्याग – अर्थात जिन कार्यों में पाप कर्म ज्यादा हो यानी कि जीवों की हिंसा हो उसे आरंभ समारंभ कहते हैं।
( 7 ) चतुर्विध संघ की सेवा करना – अर्थात साधु साध्वी श्रावक श्राविका इन चारों की सेवा भक्ति करके हम अपनी आत्मा को उज्जवल बना सकते हैं।
( 8 ) क्षमापना सभी से माफी मांगना और शत्रु को भी माफ करना सही में क्षमापना कहलाती है।