कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की कड़ी में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि ने जैन दिवाकर दरबार में धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि भगवान महावीर स्वामी हस्तीशिर्ष नगर के वासियों को 12 व्रतों में से तीसरे व्रत अदतादान चोरी करने का त्याग करने के लिये फरमा रहे थे चोर्य कर्म निंदनीय कर्म है चोरी करने वाले की इज्जत मान सम्मान सब कुछ नष्ट हो जाता है। कोई भी विश्वास नहीं करता चोर को देखकर के सभी डरने लगते हैं।
किसी के मकान दुकान में दीवार तोड़कर सामान चुराना ही नहीं यहां तक कि कोई वस्तु बिना मालिक की आज्ञा के नहीं लेना दूसरे के पोटले में से गांठे खोल करके निकाल लेना और ताले में नकली चाबी लगा करके अथवा ताला तोड़कर के बिना इजाजत के लेना भी चोरी कहलाता है।
रास्ते में चलते हुवे को लूटना पाकिट मारना चैन खींचना और किसी की वस्तु रास्ते पड़ी हुई है उसे बिना आज्ञा के ग्रहण करना में सभी चोरी के ही अलग-अलग रूप है।
अतः चोरी करने का त्याग कर लेना चाहिये आत्मा को उज्जवल अरिहंत सिद्ध के स्वरूप में पहुंचाने के भावना वाले अपनी आत्मा को धर्म के रंग में रंगे व त्याग जप तप करते हुए भविष्य को बनना जायेगा।