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ज्ञान वाणी

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि मुनि श्री ने वीरस्तुति की तीसरी गाथा का विवेचन करते हुए कहा कि – भगवान महावीर स्वामी संसारी जीवों के कर्मों से होने वाले दुखों को जानते थे।

इसलिये प्रभु ने उपदेश दिया कि अपने – अपने कर्मों की वजह से जो दुख आते हैं। उनको दूर करने के लिये धर्म की आराधना करने का मार्ग बताया ! प्रभु महावीर स्वामी स्वयं ने कर्मों को भुगता है ! कहा – ” काने खिला ठोक्या , पावे रांधी खीर, कर्मों ने बहू दुख दिया, चौबीसमा महावीर ” !

अर्थात भगवान के कानों में खिले ठोकें गये और ध्यान साधना में जंगल में खड़े थे, तब व्यापारियों ने अपनी भूख मिटाने के लिये अंधेरे में भगवान के पावों को जमीन पर गड़े पत्थर समझ कर चुल्हा बनाकर खीर पकाई थी।

प्रभु महावीर स्वामी के कर्म इतने जबरदस्त थे कि साढे बारह साल तक शांति से बैठने नहीं दिया – संगम नाम के देव ने 6 महीने तक अनेक प्रकार से उपसर्ग दिये, परंतु भगवान महावीर अपने ध्यान से विचलित नहीं हुवे।

ऐसे प्रभु महावीर स्वामी थे, भगवान महावीर स्वामी कर्मों का नाश करने में कुशल थे। महान ऋषि मुनि केवल ज्ञानी व केवलदर्शी तीनो लोक में महान यशस्वी थे। सभी के लिये चक्षु भूत थे, अर्थात जिस प्रकार आंखों से अपंग लोगों के बीच एक व्यक्ति आंख वाला रास्ता बताने में समर्थ होता है !

ऐसे ही श्रमण भगवान महावीर स्वामी संसार के जीवों को जो कि अज्ञान के अंधकार में भटकने वालों को भगवान ज्ञानरूपी आंख के समान है। ऐसे भगवान का श्रुत – चारित्ररूप धर्म को पहचानो और धर्म की आराधना करने में मनुष्य या देवताओं के द्वारा उपसर्ग को सहन करने में प्रभु महावीर स्वामी की धीरता को विचार कर अपने में धीरता वीरता लाओ जिससे आत्मा का कल्याण होगा।

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