कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आर्य सुधर्मा स्वामी वीर स्तुति की रचना सुना रहे हैं आर्य जंबू स्वामी को 12 वीं गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि – मेरु पर्वत के 16 नाम इस प्रकार से हैं -( 1 ) मंदर ( 2 ) मेरु ( 3 ) मनोरम ( 4 ) सुदर्शन ( 5 ) स्वयं प्रभ ( 6 ) गिरिराज ( 7 ) रत्नोंच्चय ( 8 ) प्रियदर्शन सिलोच्चय ( 9) लोकमध्य ( 10 )लोकनाभि (11 )अत्थे अच्छे ( 12 ) सूर्यावर्त ( 13 )सूर्यकिरण ( 14 ) उत्तम ( 15 ) दिशादी ( 16 ) अवतंस (समवायांग – जंबू दीप सूत्र )
इन सोलह नामों से महा प्रसिद्ध हो करके सुशोभित है जहां पर गांधर्व मधुर स्वर लहरी में गीत गान करते हैं उनके शब्दों से गुंजायमान होता है सभी पर्वतों में श्रेष्ठ और प्रधान है मेरु पर्वत की ऊंचाई सभी पर्वतों में सबसे अधिक है मेरु पर्वत के साथ और भी कई पर्वत जुड़े होने से इसके ऊपर चढ़ना मुश्किल है मेरु पर्वत पर औषधियों की जड़ी बूटियां होने से यह जगमगाता रहता है।
उसमें भी अलौकिक औषधियों के कारण मणिरत्नो आदि मंगल ग्रह की तरह चमकता रहता है अथवा पृथ्वी की तरह भी चमकता है।
उसी प्रकार भगवान महावीर स्वामी भी अनेक नामों से प्रसिद्ध थे जैसे कि वर्धमान महावीर ज्ञातपुत्र काश्यप महानिर्यामक वितराग श्रमण सन्मति सिद्धार्थ नंदन त्रिशला नंदन आदि अनेक नामों से जाने जाते हैं।
भगवान के शरीर की कांति सोने जैसी है इसी प्रकार भगवान महावीर का दर्शन अनेकांत है और परम सुंदर है सभी दर्शन शास्त्रों में सर्वोत्कृष्ट है साधारण और अनुभव शुन्य है मनुष्यों के लिये यह दर्शन अगम्य और उसे समझना बहुत ही मुश्किल है।