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ज्ञान वाणी

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि सुधर्मा स्वामी ने जंबू स्वामी से कहा कि भगवान महावीर ने 22 परिषह व शारीरिक, मानसिक कष्ट और राग द्वेष आदि व ज्ञानावर्णीय आदि अंतरंग शत्रुओं को जीतकर के केवल ज्ञानी केवलदर्शी बने। लोका लोक के सभी जीवो के मन के भावों को हस्त कमल के समान जानने व देखने वाले थे ,केवल ज्ञान से बढ़कर के कोई भी ज्ञान संसार में नहीं है।

विशुद्ध कोटी और अविशुद्ध कोटि दोनो प्रकार के दोष से रहित, यानी की मूल गुण व उत्तर गुण से विशुद्ध चारित्र अथार्त यथा ख्यात चारित्र के धारक थे। इस 5 वी गाथा में ज्ञान और क्रिया का समन्वय बता करके ज्ञान व क्रिया की आवश्यकता है। मोक्ष में जाने के लिये, कोई कितना भी ज्ञानी महापंडित बन जाये परंतु मुक्ति नहीं मिल सकती और कोई आत्मा केवल क्रिया ही करता रहे तब भी मुक्ति नहीं मिलती। क्योंकि भगवान नेकहा है – ज्ञान के साथ क्रिया और क्रिया के साथ ज्ञान होना आवश्यक है कहा है – ज्ञान क्रिया भ्याम – मोक्ष !

दोनों का समन्वय होना जरूरी है इस द्दष्टान्त से समझ सकते हैं। एक अंधा और एक लंगड़ा दोनों जंगल में फंसे हुवे थे। इधर जंगल में चारों और आग लगी थी निकलने का रास्ता नहीं दिखाई देती थी। उस समय दोनों ने समझौता करके लंगड़े की अंधे ने कंधे पर बिठा लिया और लंगड़ा रास्ता बताता रहा। जिससे उस आग में से सही सलामत निकल सके।

भगवान महावीर को अनेक उपसर्ग परिषह आने पर भी चारित्र का हढता के साथ पालन किये और आत्म भाव यानी कि शुक्लध्यान में स्थिर रहे। संसार में भगवान के समान अन्य कोई भी विद्वान नहीं मिल सकते ऐसे अनुन्तर ज्ञानी बने। परीग्रह दो प्रकार का है बुरा है, बाह्म – में धन धान्यादि नो प्रकार का है, तथा अभियंतर परिग्रह कर्म ग्रंथि के भेद करके मिथ्यात्व आदि 14 प्रकार की परिग्रह से मुक्त होकर के निग्रहंथ बने थे।

उसी प्रकार भगवान स्वयं सात प्रकार के भय से मुक्त थे। अभयबन करके संसार के समस्त जीवो को निर्भय बनने का उपदेश दिया और निर्भय बनाया। भगवान ने हर आत्मा को विनयवान बन ने का कहा जिससे ज्ञानवान भी बन सकते सम्मान और प्रतिष्ठा भी बढ़ती है। एक लड़का थोड़ा ना समझ था, उसे का प्रयास करते हुवे कहा बड़ों के सामने नहीं बोलना – एक दिन उसके पिता बाहर जा रहा था तो कहा घर दरवाजा बंद करले क्योंकि टी.वी. या मोबाइल चलाने फेसबुक देखने में ध्यान नहीं रहेगा।

कोई घर में घुस गया तो, पिता बोल कर चला गया लड़के ने दरवाजा बंद कर लिया और मस्ती से टीवी देख रहा था। पिताजी आये दरवाजा खटखटाया परंतु द्वार नहीं खुला आवाज होने से आस पास के लोग इकट्ठे हो गये।  तब एक व्यक्ति पड़ोसी के मकान की छत से कूद करके घर में गया और द्वार खोला बाप अंदर आया देखा लड़का आराम से टीवी देख रहा था।

लोगों ने कहा द्वार क्यों नहीं खोला तो जवाब दिया बड़ों के सामने नहीं बोलना सभी लोग उसकी मूर्खता भरी बात को सुनकर के हंसने लगे। सामने नहीं बोलना का मतलब यह नहीं कि द्वार ही बंद करके बैठ जाये। गुरु व बड़ों के सामने ऊंचे आसन पर नहीं बैठना बड़े या गुरु आये तो आसन से नीचे उतर कर खड़े रहना आदि विनय की बातें उत्तराध्ययन सूत्र के पहले अध्ययन में बहुत सारी बातें की हित शिक्षा दी है।

जो अपने जीवन को उन्नत बनाना चाहता है तो उन शिक्षाओं को आचरण में उतारे। भगवान महावीर स्वामी ने देव मनुष्य तिर्यंच और नरक के बंधन से सर्वथा प्रकार से मुक्त बन गये थे। अब भविष्य काल में एक बार भी आयुष्य कर्म भगवान को बांधने वाला नहीं। जिस प्रकार से अनाज का बीज खंडित या जल जाता है तो फिर वापस जमीन में डालने से उत्पन्न नहीं होता। वैसे ही भगवान भी कर्म रूपी बीज को जला चुके हैं तो पुनः भवरूपी अंकुर फूटने वाला नहीं। अर्थात अरिहंत भगवान फिर से जन्म धारण करने वाले नहीं हैं इसलिये भगवान आयु कर्म से रहित हो गये।

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