कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें आज दशहरे रामजी के लंका पर विजय का वर्णन करते हुए कहा कि रावण ने एक गलती कि वह यह कि सीता मैय्या का अपहरण करके ले आया जिसके कारण आज लाखो वर्ष हो गये हर वर्ष आज के दिन रावण का दहन होता आया है।
रावण सर्व शक्तिमान था कोई उसे क्या मार सकता परंतु उसके काम ने उसे मार गिराया उसकी आज्ञा का पालन चांद सूरज ग्रह नक्षत्र तारे सभी करते थे सीता को लाने का पाप उसने सीता मैय्या को लाकर के अशोक वाटिका में रख करके रोजाना पास जाकर के रानी बनने के लिये कहता था सीता के न मानने पर रावण ने राम का वेश बनाकर भी कोशिश की पर जैसे ही सीता के सामने जाते वैसे ही कामवासना समाप्त हो जाती थी।
ऐसे थे राम – जहां राम वहां काम नहीं जहां काम वहां राम नहीं आखिर आज ही के दिन राम लक्ष्मण ने रावण का वध किया था इसलिये आज के दिन को विजयादशमी कहते हैं , इसी प्रकार आज के दिन ज्योतिषाचार्य उपाध्याय प्रवर मालव रत्न पंडित रत्न श्री कस्तूरचंदजी म सा की आज पुण्यतिथि है आपका जन्म जावरा मध्य प्रदेश में हुआ था माता-पिता भाइयों की प्लेग में मृत्यु हो चुकी आप दो भाई बच्चे केसरीमलजी कस्तूरचंदजी दोनों ने दीक्षा ले ली थी गुरु सेवा व ज्ञान सीखने की लगन से वे पंडित ज्ञानी ध्यानी व ज्योतिष के प्रकांड विद्वान बने वै साधर्मी भाई की सेवा कराने में उन्हें आनंद की अनुभूति होती थी वे गरीबों के मसीहा थे उनकी सेवा का कुछ समय साथ रहने का अवसर मिला था ऐसे महापुरुष को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं आज ओली जी का चौथा दिन है श्रीपालजी अपने ससुर व मां से इजाजत ले चुके थे परदेश जाने के लिये मैना के पास आकर कहा – प्रिये मुझे इजाजत दो जिससे परदेश में मैं अपना भाग्य आजमाकर देखना चाहता हूँ।
मैना ने कहा क्या किसी ने अपमान किया या किसी ने बात नहीं मानी तब श्रीपाल ने कहा मैंना न किसी ने अपमान किया या आज्ञा नहीं मानी ऐसी कोई वजह नहीं मैना ने कहा तब बताइए क्या कारण है ,तब श्रीपाल ने कहा मुझे यहां राजा का जमाई है करके पहचाना जाता हूं कहा भी दूर जमाई फूल बराबर गांव जमाई अध्दा घर जवाई गधा बराबर जब चाहे तब लध्दा दूर शहर का जमाई फूल की तरह होता है और गांव का जमाई आधा होता है पर घर जमाई को तो गधे के बराबर समझा जाता है जब जी चाहे तब उस पर सामान लादा जा सकता है बस यही कारण है परदेश जाने का।
इस प्रकार श्रीपालजी ने मैना को समझा कर इजाजत प्राप्त की साथ चलने की भी जिद की पर मैना के पास अपने पति की बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। ,तब मैंना ने कहा – आप वापस कब आएंगे तब श्रीपाल ने कहा बारह साल के बाद अष्टमी के दिन मैं तुम्हें आकर मिलूंगा यह मेरा वादा है मैंना कहा मैं बारह बरस और अष्टमी के दिन की राह देखूंगी फिर भी नहीं आये तो मैं दीक्षा ग्रहण कर लूंगी। इस प्रकार की बातचीत के बाद श्रीपालजी ने जाने की तैयारी करके अकेले ही चल पड़े नवकार मंत्र का जाप करते हुवे सानंद विदा हुए।