कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि आज ओली जी का दूसरा दिन है और नवपद महिमा की गौरव गाथा का वर्णन चल रहा है।
श्रीपाल राजा की बात करते हुए कहा कि बालक श्रीपाल अपनी मां के साथ कोढ़ीयों के साथ रहते हुवे श्रीपाल के भी शरीर में भी कुष्ठ रोग हो गया था। यह देखकर माँ घबरा गई बच्चे का शरीर कैसे निरोग हो चिंतित हो गई और सोचा कहीं से दवा मिल जाये तो लेकर आउँ।
उसके लिये बच्चे को उन कोढ़ीयो के हाथों में सौंपकर के दवाई की खोज में चल पड़ी। गांव गांव में खोज रही थी पर कहीं पर भी सही दवा नहीं मिल पा रही थी। इधर महीनों बरस बीतते जा रहे थे कुष्टी लोग भी घूमते घूमते उज्जैनी नगरी के पास पहुंच गये थे। उस समय वहां पर पऊपाल राजा थे न्यायनीति वाले थे। उनके दो रानियां थी पटरानी सौभाग्य सुंदरी व रूप सुंदरी दोनों ने एक एक कन्या को जन्म दिया।
एक सुर सुंदरी दूसरी मैना सुंदरी उन्हें पढ़ने के लिये भेजा पढ़ लिख करके होशियार हो गई। उन्हें राज सभा लाया गया राजा ने दोनों की परीक्षा ली सुर सुंदरी ने पंडित के पास शिक्षा ली थी और मैना सुंदरी ने जैन धर्म का ज्ञान शिखा था। राजा ने सुर सुंदरी पर प्रसन्न होकर कहा कि तुम्हें जो वर पसंद हो बता दो उसके साथ विवाह करा दूंगा।
वैसे ही मेंना ने कहा पिताजी यह मेरा धर्म नहीं है। मेरा कहना तो दूर में यह बात सुनना भी नहीं चाहती कन्या की धर्म है, माता-पिता जहां जिसके हाथ में सौंप दे उसे स्वीकार करना गाय और कन्या दोनों बराबर है। गाय की रस्सी जिसके हाथ में दे दो वह उसके साथ चली जाती है।
वैसे ही कन्या भी मां-बाप जिसके साथ विवाह करते हैं भले ही वह राजा या रंक हो रोगी हो या निरोगी हो काना बाड़ा लूला लंगड़ा अंधा आदि जैसा भी हो मेरे लिये पति परमेश्वर है। पिता पुत्री में वाद विवाद बढ़ता ही गया तब मंत्री ने विवाद टालने के लिये वन विहार के लिये नगर के बाहर ले गये वहां पर 700 कोढ़ीयों के साथ अम्बर राणा श्रीपाल को देखा तो मैना की बात याद आ गई।
जिसने कहा था बेटी आप कर्मी होती है बाप कर्मी नहीं राजा ने निश्चय किया कि मैंना के आप कर्मी की परीक्षा लेना है। इसके लिये कोढ़ीयों से कहा तुम्हारा राणा की शादी हमारी बेटी के साथ करने के लिये शाम को महलों में आ जाओ इस प्रकार श्रीपाल मैना का विवाह हो गया। नगर बाहर वृक्ष के नीचे बैठ कर बात करते हैं श्रीपाल ने कहा अपने पिता के पास जाओ और कहो मेरी गलती हो गई अब मैं मनपसंद वर के साथ विवाह करूंगी।
मेंना ने कहा है प्राणनाथ करना तो दूर रहा में ये सब सुनना भी नही चाहती मुझे तो आपकी सेवा का अवसर मिला है। में अपने आपको धन्य सामजंगी सेवा करके इस प्रकार धरम चर्चा करते हुए शत व्यक्तित होने पर प्रात काल मेंना श्रीपाल जी को लेकर के धर्म स्थान पर पहुंची जहां पर गुरु महाराज विराजमान थे।
प्रवचन पूर्ण होने पर गुरु महाराज ने मेंना से पूछा यह तुम्हारे साथ कौन है। मैंना ने कहा यह आपके श्रावक है। गुरुदेव कुछ ऐसा देवे जिससे ईनकी बीमारी दूर होवे। गुरुदेव ने कहा मैंना मुनि गण यंत्र मंत्र तंत्र गंडा ताबीज जड़ी-बूटी आदि सब नहीं कर सकते। सच्चे साधु पर हां नवपद नवकार मंत्र की आराधना साधना बता सकते हैं धर्म करणी करने से सब ठीक होगा।