ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा जीवन का कलाकार सबसे बड़ा होता है। आज महावीर जिह्वा पर है किंतु जीवन में नहीं। चर्चा में है पर चर्या में नहीं। प्रभु का चित्र तो हम बहुत बड़ा लगा लेते हैं पर चरित्र में प्रभु आए या नहीं इस पर विचार करना है। उन्होंने दुख देने वाले को मित्र माना। हर हाल में समभाव की साधना की। तिरस्कार का स्वागत किया और भव्य आत्माओं को प्रेरित किया कि मुक्ति की सुवास पाना है तो कष्टों को सहन करना ही होगा।
कथानक छोटा हो या बड़ा यह विशेष बात नहीं परन्तु कथा की सरसता और सजीवता देखी जाती है। उसी प्रकार जिंदगी उसकी अच्छाइयों से नापी जाती है। जैसे आम जनता को प्रिय है वैसे प्रिय बनने की कला को सीखना है। आज भगवान महावीर के गुनग्रहण करना है। उन्होंने वीर से महावीर बनने के लिए अथक पुरुषार्थ किया और दानवीर, त्यागवीर, तपवीर, क्षमावीर और कर्मवीर बने। आठों कर्म से लड़ते लड़ते महावीर बन गए। भगवान ने अहिंसा, एकांतवाद, अपरिग्रहवाद का सिद्धांत देकर जीवों को अपना सुदंर लक्ष्य बनाने की प्रेरणा दी।
सुप्रतिभा ने अंतगड़सूत्र का वाचन किया। साध्वी अपूर्वा ने गीतिका का संगान किया। महिलाओं ने इस अवसर पर चौदह स्वप्नों पर आधारित नाटिका का मंचन किया। नाटिका का संचालन पिंकी गुंदेचा और राखी विनायकिया ने किया।