दिंडीवनम. यहां विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने कहा मित्रता ऐसी होनी चाहिए कि भले ही मित्र सुख में साथ हो या ना हो लेकिन दुख में कभी भी दूर नहीं होना चाहिए। मित्रता लोटा और डोर की तरह होनी चाहिए जिससे अगर दोनों साथ में हो तो गहरे से गहरे कुंए से भी पानी निकल जाए।
ऐसी मित्रता ही भगवान कृष्ण ने सुदामा के साथ निभाई थी। उन्होंने कहा कृष्ण ने अपने मित्र के साथ जैसा किया था वैसा ही प्रत्येक मनुष्य को अपने मित्रों के साथ व्यवहार रखना चाहिए। अगर अपने पास है तो अपने जरुरतमंद मित्रों का हर मोड़ पर सहयोग करने का मन रखना चाहिए।
सागरमुनि ने कहा जब भी मनुष्य संतों के चरणों में जाता है तो चरण स्पर्श करता है, क्योंकि चरण शरीर को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने का कार्य करता है। चरण ही ऐसे होते हैं जो मनुष्य को कभी भी ऊंचाई पर ही पहुंचाने का कार्य करते हैं।
अगर चरण ना हो तो मनुष्य कहीं भी नहीं पहुंच सकता। मनुष्य देश विदेश की यात्रा अपने चरणों से ही कर सकता है। चरण की तरह ही आचरण भी होते हंै। आचरण मनुष्य को मोक्ष में ले जाने वाले होते हैं। मनुष्य अगर चाहे तो इन दोनों के सहारे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।