सूरत। पाल में आयोजित दो दिनी प्रवचनमाला के समापन पर कुशल वाटिका सोसायटी के पास उमड़ा लोगों का हुजुम। घर को कैसे स्वर्ग बनाएं विषय पर हुआ महान दार्शनिक राष्ट्र-संत श्री चन्द्रप्रभ महाराज का प्रवचन। परिवार की हृदयस्पर्शी घटनाओं को सुनकर श्रद्धालुओं की आँखें हुई नम। झकझोरने वाली बातें सुनकर सास-बहू, भाई-भाई, देराणी-जेठाणी ने खड़े होकर फिर से हिलमिलजुलकर रहने का किया वादा। संतप्रवर ने घर में नहीं, घर को ही मंदिर बनाने का दिया पैगाम और धर्म की शुरुआत मंदिर-मस्जिद की बजाय घर से करने की दी सीख। हम सोचें ऐसी बातें जिन बातों में हो दम, दुश्मन से भी हम प्यार करें दुश्मनी हो जिससे कम…भजन पर झूम उठा पूरा पांडाल।
राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ महाराज रविवार को कुशल कांति खरतरगच्छ संघ द्वारा न्यू आरटीओ के सामने, संजीवकुमार आॅडिटोरियम के पास, पाल में आयोजित दो दिवसीय सत्संगमाला के समापन पर हजारों श्रद्धालु भाई-बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि परिवार इंसान की पहली पाठशाला और पहला मंदिर है। ईंट, चूने और पत्थर से मकान का निर्माण होता है घर का नहीं। जहाँ बीबी-बच्चों के साथ माता-पिता और भाई-बहिनों को सम्मान से रखा जाता है वही घर परिवार कहलाता है। जो लोग आठवे वार परिवार को सरस नहीं बनाते उनके सातों वार नीरस बने रहते हैं। उन्होंने कहा कि परिवार की ताकत पैसा, गाड़ी, बंगला, फेक्ट्री नहीं, प्रेम, भाईचारा, सहानुभूति और समर्पण की भावना है। केवल चढ़ावे बोल लेने और पूजा कर लेने भर से लक्ष्मी खुश नहीं होती। जिस घर में लोग अपने स्वार्थों का त्याग कर आपस में प्रेम से रहते हैं उनके यहाँ लक्ष्मीजी और महावीरजी सदा बसेरा किया करते हैं।
रोज मनाएं ईद, होली और दिवाली-एक दिन ही ईद, होली और दिवाली का पर्व मनाने वालों पर व्यंग्य करते हुए संतश्री ने कहा कि वे लोग गेले हैं जो एक दिन ही ऐसे पर्व मनाते हैं। जिस घर में सुबह उठकर भाई-भाई आपस में गले मिलते हैं और माता-पिता के पाँव छूते हैं वह हर सुबह ईद का पर्व बन जाती है, जहाँ दोपहर में देराणी-जेठाणी मिलकर खाना बनाते हैं और सास-बहू साथ-साथ खाना खाते हैं उनकी दोपहर होली का पर्व बन जाती है और जो बेटे-बहू सोने से पहले बड़े-बुजुर्गों के पाँव दबाने का सुकुन पाते हैं उनकी रातें भी दुआओं की दीपावली बन जाती है।
मूरत, सूरत से पहले पूरी करें जरूरत-बेटे-बहुओं को सीख देते हुए संतश्री ने कहा कि भगवान की मूरत और संतों की सूरत बाद में देखें, पहले माता-पिता की जरूरत पूरी करें। जो माँ-बाप, सास-ससुर को भगवान तुल्य मान सेवा करता है उसे उनकी मूरत में ही भगवान की सूरत दिख जाती है। उन्होंने कहा कि मंच पर खड़े होकर भाषण और प्रवचन देना सरल है, पर घर में प्रेम से रहना मुश्किल है। व्यक्ति 84 लाख जीवयोनियों से क्षमा बाद में मांगे, पहले घरवालों से क्षमा मांगने का बड़प्पन दिखाए। केवल उम्र से व्यक्ति बड़ा नहीं होता, जो वक्त आने पर झुक जाता है, पर परिवार को कभी टूटने नहीं देता वही घर में सबसे बड़ा कहलाता है। उन्होंने कहा कि अगर आप घर में आपस में नहीं बोलते हैं तो मंदिर के दर्शन, संतों की सेवा और सामायिक का धर्म करने से पहले टूटे रिश्तों को सांधें और गले मिलें अन्यथा सारा धर्म-क र्म निष्फल्ल हो जाएगा।
उदार व्यक्ति को अध्यक्ष बनाएं-संतश्री ने चुनाव जीतने वाले अथवा अमीर व्यक्ति को समाज का अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि जिस घर में पाँच भाई साथ में रहते हो उन्हीं में से एक व्यक्ति को समाज का अध्यक्ष बनाया जाए क्योंकि वह जानता है कि घर को एक रखने के लिए कितनी कुर्बानियाँ देनी पड़ती है। जो घर में ही एक नहीं है वो भला समाज को एक कैसे रख पाएगा। उन्होंने कहा कि किसी क्लब के सदस्य बनकर इंसानियत की सेवा न कर पाओ तो दिक्कत नहीं, पहले घरवालों की सेवा करना शुरू करो, कमजोर भाई के काम आओ, इससे बढ़कर इंसानियत की क ोई सेवा नहीं हो सकती। जो बाहर जाकर तो सेवा करता है, पर घरवालों को दुत्कारता है ऐसे लोगों को भगवान कभी माफ नहीं करता।
महावीर से पहले राम का धर्म जिएं-राम और रामायण को जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा देते हुए संतप्रवर ने कहा कि महावीर का धर्म कठिन है उसे जी सको तो उत्तम, नहीं तो कम से कम राम और रामायण का धर्म तो जी ही लेना। स्वयं के जीवन की हकीकत बताते हुए संतश्री ने कहा कि हमारे माता-पिता की बुढ़ापे में संन्यास लेने की इच्छा हुई।
बुुढ़ापे में उनकी सेवा कौन करेगा यह सोचकर पाँच भाइयों में से हम दो भाइयों ने भी संन्यास धारण कर लिया और हम गर्व से कहते हैं हमने मोक्ष या वैराग की भावना से नहीं, माँ-बाप की सेवा के लिए संन्यास लिया। राम जी ने केवल 14 साल का वनवास लिया था, पर हमने जिंदगी भर के लिए संन्यास ले लिया और आज भी हम भाई-भाई राम-लक्ष्मण की तरह बड़े प्रेम से रहते हैं। हमारा शरीर भले ही अलग-अलग है, पर आत्मा दोनों की एक है।
घर को ही बनाएं मंदिर-उन्होंने कहा कि घर में नहीं वरन् घर को ही मंदिर बनाएं। जब प्यासों को पानी पिलाना और भूखों को भोजन करवाना पुण्य की बात है तो घरवालों को पानी पिलाना और भोजन करवाना पाप की बात कैसे हो जाएगी। जैसे मंदिर में झाड़ू लगाना पुण्य की बात है वैसे ही घर में झाड़ू लगाना भी पुण्य है।
हिलमिलजुलकर रहें-घर को स्वर्ग बनाने का पहला मंत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि घर के सभी लोग आपस में हिलमिलजुलकर रहेें। एक-दूसरे को खूब प्यार करें। चार दिनों की जिंदगी है पता नहीं किसकी कब हवा निकल जाए इसलिए ऐसा कोई काम न करें जिसके कारण हमारे घरवाले हमसे दुखी हो। अगर बेटा-बहू माता-पिता से यह कह दे कि हम सौ साल तक आपकी छत्रछाया में रहना चाहते हैं तो इससे बढ़कर उनके लिए कोई सुकुन नहीं होगा। उन्होंने सासूओं से कहा कि वे कभी भी ऐसी जबान न बोलें कि जिसके क ारण बहुओं की आँखों में आँसू आ जाए और बहुएं भूलचूककर ऐसा व्यवहार न करे कि सासू का दिल दुखी हो जाए।
सास-ससुर बहू के साथ बेटी जैसा व्यवहार करे, उसे ज्यादा टोकाटोकी न करे और बहू उन्हें अपना माँ-बाप माने, उन्हें मंदिर साथ में ले जाए, दोपहर में साथ में बैठकर खेल खेले। देराणी-जेठाणी नई चीज आने पर पहले एक-दूसरे को देने का बड़प्पन रखे। भाई-भाई सदा साथ रहें, इससे ताकत भी बढ़ेगी और यश भी। जिस घर में सब हिलमिलजुलक र रहते हैं वह घर अपने आप धरती का जीता-जागता स्वर्ग बन जाता है।
इससे पूर्व मुनि शांतिपिय सागर ने सभी भाई-बहनों को तकरार छोड़ जीवन में सबसे प्यार बढ़ाने की प्रेरणा दी। उन्होंने सामूहिक प्रार्थना करवाई। इस अवसर पर अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित किया। कार्यक्रम में साहित्य की प्रभावना भंवरलाल गौतमचंद मरडिया परिवार द्वारा सभी को समर्पित की गई।
मंच संचालन जवेरीलाल देसाई ने किया और आभार सुरेश एल मंडोवरा, चम्पालाल देसाई, पारसमल मण्डोवरा, शांतिलाल मरड़िया ने दिया।
राष्ट्र-संतों के सोमवार को कामरेज में रात्रि 8 बजे होंगे भव्य प्रवचन-राष्ट्र-संतों के सोमवार को रात्रि 8 से 10 बजे तक 3 शांति विला बंग्लोज, कामरेज पुलिस चैकी के सामने, कामरेज में भव्य सत्संग-प्रवचन कार्यक्रम होंगे।