पूज्य जयतिलक जी मरासा ने प्रवचन में बताया कि श्रीपाल चरित्र का वांचन नौ दिनों तक होता है! गौतम गणधर भगवान महावीर के शिष्य भगवान की आज्ञा से राजगृह से बाहर आए और आते हुए मार्ग में कई भव्य जीवों का उदार किया। जैसे नदी बहते हुए मार्ग में कल्याण करती है वैसे ही मुनिराज भी जिस मार्ग से गुजरते है लोगों को कल्याण करते हैं। राजा श्रेणिक गौतम स्वामी को वंदन नमन करने उपस्थित हुए !
गौतम स्वामी ने नवपद की आराधना की प्रेरणा दी। श्रेणीक ने पुछा की हे भंते इस महान नवपद का ध्यान किसने किया और क्या फल हुआ आप ज्ञानवान फरमाइयो गौतम गणधर ने फरमाया एक राजा श्रीपाल जिसने तीनों तीनों काल में नवपद का ध्यान किया और पल में निहाल हुआ ! चौथे आरे में एक चम्पापुरी, नामक नगरी जो समृद्ध संपन्न थी ! जैन धर्म का राजा सिंहरथ था। कमल प्रभा नाम की रानी थी! जो पतिव्रता, गजगामनी नारी थी। कोंकण देश के राजा की छोटी बहन थी। राजा और रानी को संतान नहीं होने का दुःख था! पुण्ययोग से कोटी भट्ट पुरषो जितना बलवान पुत्र हुआ। संतान पुण्य से होती है। यदि किसी के संतान नहीं है, तो वह इधर उधर भटकते है मिध्याथ्व का सेवन कर लेते हैं।
पुत्र जन्मोत्सव में एक लाख स्वर्ण मुद्राएं का दान एवं बंदी का मुक्त कर दिया ! राज्य भर में खुशिया मनाई गई राजा प्रजा ने जन्मोत्सव मनाया और नाम दिया “श्रीपाल” । पाँच वर्ष का हुआ तब बालक का हुनर उभरने लगा । पाप योग के उदय के सिंहरथ राजा को शुल रोग हुआ और राजा काल कर गया।
रानी रूदन करने लगी। जिसे सम्भालने वाला कोई नहीं। राजा का मंत्री मतिमगर जिसने रानी कमलप्रभा को धैर्य बन्धाया और समझाया राज्य का भार अब आप पर है उसे सम्भालो ! रानी सम्भली और राजा का अंतिम कार्य काज किया! श्रीपाल को राजभिषेक कर तुम शासन की डोर सम्भालो ! मंत्री ने प्रजा को धैर्य बंधाया और शोक का निवारण किया। श्रीपाल को राजा बना दिया। राजा सिंहरथ का एक छोटा भाई था वीरमन जिसके मन में खोट आ गई कि अब चम्पा का राज्य मै करुंगा ।