गुस्सा एक ऐसी चिज जो हमारा शत्रु है – शत्रु वो होता है जो हमारा नुकसान करता है। आदमी को गुस्सा नहीं करना चाहिए जब गुस्सा आये तो दिर्ध श्वांस का प्रयोग करे। जो कार्यकर्ता स्वयं को सेवा के लिए समर्पित कर दिया है वो ध्यान रखे हमे हर परिस्थिति में गुस्सा नहीं करना चाहिए।
मनुष्य को शान्ति का जिवन जिना चाहिए, अपमान हो गया तो भी शान्ति रखे और सम्मान मिल भी गया तो भी शांति रखे। दुनिया अच्छे कार्य करने वालों की निन्दा करती है पर हमेशा उस समय स्वयं रखना चाहिए। आवेश करने से खुद का ही नुकसान होता है हम गुस्से को नियंत्रित रखेंगे तो ही आगे बढ़ पायेंगे।
हमे दिमाग संतुलित और शांत रखना चाहिए क्योंकि कार्य का भार इतना ज्यादा रहता है यदि दिमाग अस्त – व्यस्त रहेगा तो हमारे कार्य की गति रूक जायेगी। हमे कोई भी निर्णय आवेश में नहीं लेना चाहिए, सोच समझ कर लेना चाहिए। गुस्सा प्रेम का नाशक है। आज मोहन भागवत जी हमारे बीच पधारे हैं। भाषण देना अलग बात है पर अपने जीवन का समय सही जगह नियोजन करना बड़ी बात होती है। मोहन भागवत का वक्तव्य बहुत बार सुना बहुत ही प्रेरणास्त्रोत रहता है।
आज से पच्चास साल पहले हमारे गुरु आचार्य प्रवर चेन्नई पधारे थे आज उनका अनुसरण करते हुए उन्हीं के शिष्य हम भी चेन्नई आये हैं।
। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी ने लोगों को पुरुषार्थ करने के लिए उत्प्रेरित किया।
इसके पूर्व मुख्यमुनिश्री ने गीत का संगान किया। श्री कपूरचंद सेठिया व श्री प्यारेलाल पितलिया ने पुस्तक को श्रीचरणों में समर्पित किया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री ललित दूगड़ ने भावाभिव्यक्ति दी। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धर्मचंद लूंकड़ व आदि ने आर.एस.एस. प्रमुख को स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया।