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ज्ञान वाणी

गुरू बिना ज्ञान और ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं : स्वामी निर्मालानन्द

गुरू बिना ज्ञान और ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं : स्वामी निर्मालानन्द
कर्नाटक के सबसे बड़े मठ के स्वामी श्री श्री श्री निर्मलानन्दजी ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे हुए भिन्न भिन्न धर्मों के धर्म प्रेमी श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि श्रद्धा ज्ञान देती हैं, नम्रता मान देती हैं, योग्यता स्थान देती हैं और वो तीनों मिल जाए तो आदमी को हर जगह सम्मान देती हैं|
  आपने कहा कि गुरू बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं| अत: व्यक्ति का अपने गुरू के प्रति श्रद्धा भावना से वह साधना के मार्ग पर आरोहण कर लेता हैं|
  आपने आगे कहा कि भगवान महावीर ने दुनिया को सकारात्मक चिंतन प्रदान किया| ध्यान रूपी आध्यात्मिक, असांप्रदायिक साधना का पथ बताया|
   आचार्य श्री निर्मलानन्द स्वामी ने कहा कि मेरे गुरू बालगंगाधर स्वामी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञजी इन दोनों का गत तीस वर्षों से आत्मीय मधुर सम्बन्ध रहा हैं और हमारे संस्था द्वारा संचालित सभी स्कूलों में पढ़ने वाले लगभग 1,50,000 विद्यार्थीयों को आज तक जीवन विज्ञान की शिक्षा दी जा रही है, इससे बच्चों के जीवन विकास में भी बहुत लाभ हो रहा हैं|  मेरा भी आचार्य श्री महाश्रमणजी से आत्मीय सम्बन्ध हैं| मैं मेरी और से आपको ससंघ, श्रावक समाज सहित आपको बंगलूर आने का आत्मिय निमंत्रण दे रहा हूँ|
मुखिया को मर्यादा, नियमों के प्रति निष्ठावान होना चाहिए
  आचार्य श्री महाश्रमण ने ठाणं सूत्र के छठे स्थान के पहले श्लोक का विवेचन करते हुए कहा कि परिवार, गांव, समूह, संगठन या राष्ट्रीय को चलाने के लिए मुखिया का होना जरूरी है| राजतांत्रिय हो या लोकतांत्रिक दोनों प्रणालियों में मुखिया बनाया जाता हैं| धार्मिक संघ, गण में साधु – साध्वीयाँ, श्रावक -श्राविकाएँ होती हैं, तो उस साधु संस्था में एक साधु को मुखिया बनाया जाता हैं|
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि मुखिया साधु श्रद्धाशील होना चाहिए| शास्त्रों, आगमों के प्रति उनका श्रद्धा भाव होना चाहिए| जैसे कोई भी राष्ट्रीय या संस्था का संविधान होता हैं, मर्यादाएँ होती हैं| संस्था के सदस्यों का संविधान के प्रति सम्मान होना चाहिएउसी तरह मुखिया साधु का संघ की मर्यादा, नियमों के साथ संगठन के प्रति सम्मान होना चाहिए| व्यक्तिगत हित को गौण कर संगठन के हित को बहुमान देना चाहिए|
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि मुखिया साधु में आत्मविश्वास होना चाहिए| जो डरपोक होता है, वह नेतृत्व सही नहीं कर पाता| धर्म संघ के मुखिया को देव, गुरू, धर्म के प्रति निष्ठावान होना चाहिए| वीतराग प्रभु झूठ नहीं बोलते, जिसमें राग द्वेष होता हैं, वहीं झूठ बोल सकता हैं, अत: मुखिया की वीतराग वाणी पर श्रद्धा होनी चाहिए|
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि संचय दो प्रकार का होता हैं, एक हैं, जिज्ञासा| जिज्ञासा से आदमी कल्याण को प्राप्त कर सकता हैं| दूसरा है, देव, गुरू, धर्म के प्रति संचय, मैं साधु संन्यासी बना, मेरा आत्म कल्याण होगा या नहीं, परलोक हैं या नहीं? यह संचय विनाश का कारण हैं| इस प्रकार का संचय वाला साधु मुखिया बनने लायक नहीं हैं|
   आचार्य श्री ने आगे कहा कि आदमी में श्रद्धा का बल होता हैं| पंच परमेष्ठी के प्रति मुखिया की श्रद्धा होनी चाहिए|
   आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि जो सत्यवादी, यथार्थवादी होता हैं, वह साधु समाज का मुखिया बनने लायक हैं| थोड़ी कठिनाई भोग ले, लेकिन झूठ नहीं बोले| विश्वास पैदा करने के लिए सत्यवादिता जरूरी हैं| माया – मृषा वाला विश्वासपात्र नहीं बन सकता| मुखिया मैधावी होना चाहिए|
सेना धंधा नहीं, जज्बा है : मेजर
    मेजर N S राजपुरोहित (पंचकूला, हरियाणा) ने कहा की इतिहास गवाह है कि जब तक धर्म का पालन नहीं होता, वो सेनाएं कभी नहीं जीत सकती। जो लीडर धर्म के सिद्धांतों पर चलता है, वहीं सफल लीडर बन सकता है।
   मेजर ने कहा कि अणुव्रत मानवता को बहूत बड़ा अवदान है। मिल्ट्री (सेना) सर्व धर्म स्थल है सेना में सभी धर्मों के सम्प्रदाय के लोग एक स्थान पर रहते है। उन्होंने अपने जीवन की घटना को बताते हुए कहा कि माताएँ, बहिनें अपने बच्चों को, भाइयों को धर्म के संस्कार दे।
   आपने धर्मसभा से आह्वान करते हुए कहा कि आपके परिवार से भारतीय सशक्त सेना का हिस्सा बनें, बनाये। यह धंधा नहीं, जज्बा है। भारतीय सेना आक्रमण नहीं, अपितु रक्षात्मक सेना है। देश की सेना मजबूत होगी, उसकी ताकत होगी, तो कोई भी देश आँख उठाकर सामने नही देख सकता है। जैसे धर्म ही कर्म है,उसी तरह हमारी सेना में सेवा ही हमारा धर्म है।
   छत्तीसगढ़ के मुख्य न्यायाधीश श्री गौतमचंद चोरडिया ने गुरू के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करते हुए कहा कि न्यायिक जीवन मे बहुत कठिनाइयां आती है, लेकिन श्रद्धा के साथ गुरु के स्मरण से, वे स्वतः समाप्त हो जाती है। अपने जीवन का अविस्मरणीय संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मेरे जीवन काल में एक बार ऐसी विद्रोह की स्थिति आई जो हिंसक बन गई, आगजनी हुई, लेकिन दूसरे दिन न्यायालय में जाने से पहले आचार्य श्री महाश्रमणजी का स्मरण कर न्यायालय पहुँचा, तो विद्रोही पक्ष के सभी लोग मेरे कक्ष में आकर, कल की हुई घटना के लिए क्षमा मांगी|
   उन्होंने कहा कि मैं आज जो कुछ भी हूँ, तेरापंथ धर्मसंघ के कारण हूँ| अगर में पूरे परिवार को भी धर्मसंघ में समर्पित कर दू, तो भी उऋण नहीं हो सकता।
    अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती कुमुद कच्छारा ने आचार्य तुलसी शिक्षा परियोजना के अंतर्गत जैन स्कॉलर दीक्षांतसमारोह के अवसर पर कहा की अभातेमम की चार प्रमुख योजनाओं में से एक से है तत्वज्ञान एवं तेरापंथ दर्शन प्रचेता योजना।
  डॉ. श्रीमती मंजू नाहटा, श्री मूलचंद नाहर (बेंगलोर), श्री ललित आच्छा(बंगलूर) ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
    तत्वज्ञान एवं तेरापंथ दर्शन प्रचेताओ को अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की ओर से स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति पत्र दिया गया।
   श्रीमती नीतू लुंकड़ – 28, श्रीमती वनिता मरलेचा – 28 व श्रीमती दयमंती गांधी ने 10 की तपस्या का आचार्य श्री के श्रीमुख से प्रत्याख्यान किया गया।
  आज इस अवसर पर बंगलूर, खानदेश, मराठवाड़ा, सरदारशहर इत्यादि अनेक क्षेत्रों के श्रद्धालु परम पूज्य आचार्य प्रवर की पावन सन्निधि में आये| बाहर से पधारे स्वामीजी, कर्नल और अन्य अतिथियों का चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति चेन्नई और बंगलूर द्वारा साहित्य, स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया|
  *✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
 
स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार

आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समि

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