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गुरु ही करते हैं विघ्नों का नाश: आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर

चेन्नई. आचार्य तीर्थ भद्रसूरीश्वर ने कहा सम्यक दर्शन से ही साधना की शुरुआत होती है । यह जिनवाणी के प्रति श्रद्धा भाव और मोक्ष का द्वार है। गुरु की कृपा जो मानते हैं वे ही वास्तव में ज्ञानी होते हैं। किलपॉक के रंगनाथन एवेन्यू स्थित एससी शाह भवन में उन्होंने कहा सम्यक दर्शन के तीन लिंग यानी चिन्ह होते हैं।

शुश्रुषा, धर्मराग और गुरुदेव का वैयावच्च। तत्वों को पहचानने की तीव्र अभिलाषा सुश्रुषा है। गुरु हमारे लिए सबसे निकट के उपकारी हैं। पहले गुरु का वैयावच्च और साथ में देव का वैयावच्च, यह सम्यक दर्शन के प्रतीक हैं ।

उन्होंने गुरु और अध्यापक में अन्तर कर बताया कि अध्यापक बाहरी जगत का ज्ञान देते हैं और वे आपको बाहरी जगत का अध्ययन कराएंगे, अन्तर जगत का ज्ञान देंगे और अन्तर जगत में ले जाएंगे। पूरा विश्व बाहरी जगत की ओर जा रहा है लेकिन अन्तर जगत में जाने से ही इस भव से तर सकते हैं। यह केवल पुण्योदय से ही संभव है।

आचार्य ने बताया शास्त्रों के अध्ययन के लिए तीन सिद्धांत जरूरी है खाली होना, खुले होना और खोजी बनना। जैसे समुद्र की गहराई में जाने से रत्नों की प्राप्ति सम्भव है वैसे ही धर्म शास्त्रों की गहराई में जाने से ही उसे हृदय में उतार सकते हैं। शास्त्र अध्ययन को केवल सुनना भर नहीं है, बल्कि उसे हृदय के उद्यान में प्रवेश कराना है । खाली होने का मतलब आप शून्य बनो। अध्यात्म और भौतिक जीवन में शून्य की कीमत निष्फल और निरर्थक नहीं है।
उन्होंने कहा भौतिक जीवन में बाद में शून्य लगे तो उसकी कीमत है वहीं अध्यात्म जीवन में पहले शून्य चाहिए। ज्ञानी भगवंत कहते हैं जब तक आप शून्य नहीं बन सकते साधना नहीं कर सकेंगे। शून्य बनना यानी अहंकार का त्याग अनिवार्य है। मुनि तीर्थ तिलकविजय ने कहा चातुर्मास में तत्वों के रहस्यों की प्राप्ति करने का प्रयास करना है। 22 जुलाई से प्रतर तप की आराधना शुरू होगी। 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को 68 दिन बियासणा कराया जाएगा।

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