ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा गंगा में स्नान करने से केवल तन पवित्र होता है। गुरु का गुणगान करने से तन, मन और आत्मा तीनो पवित्र होती है।
महान पुरुष प्रारम्भ में लघु फिर विराट और अंत में अनंत हो जाते है। उनका चिंतन युग का चिंतन हो जाता है। हम सभी की दौलत गुरु की बदौलत होती है।
गुरु की नसीहत ही हमारी असली वसीहत है। मरुधर केसरी मिश्रीमलजी की 128वीं जन्म-जयंती पर सतीश्री ने कहा की गुरुदेव जीवदया के प्रेमी थे।