चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने संवत्सरी पर कहा पर्यूषण जीवन के लिए मौका बन कर आता है। उस मौके का सुनहरा दिन क्षमा का होता है। आज के दिन क्षमा मांगने के साथ क्षमा करना भी चाहिए।
जैसे दिन रात पढ़ाई करने के बाद परीक्षा में अगर विफल हो गए तो पढ़ाई का मतलब नहीं निकलता। वैसे ही पर्यूषण पर्व में आत्मा की शुद्धि के बाद अगर माफ करना नहीं सीखा तो पर्व सार्थक नहीं होगा।
पर्व को सार्थक करना है तो जीवन में क्षमा करना लाना होगा। परिस्थिति कैसी भी हो जो शांत रहकर क्षमा करते हैं उनका जीवन सफल हो जाता है।
साध्वी समिति ने कहा आज संवत्सरी का अवसर आया है यानी सभी को क्षमा करने का दिन है। पर्युषण के दौरान सभी ने अन्तगड़ सूत्र के माध्यम से आत्म शुद्धि की अब क्षमा कर आवरण के परत को हटा लेना चाहिए।
मनुष्य को अपने साथ बच्चों को भी तप के लिए आगे करना चाहिए। जैसे रोजा में सभी बच्चों को तप कराया जाता है वैसे ही हमें भी सिखाना चाहिए। क्षमा का पर्व सार्थक करना है तो जीवन से अहंकार दूर करने का लक्ष्य बनाना होगा। जब तक मनुष्य क्षमा करना नही सीखेगा तब तक उसके जीवन में प्रकाश नहीं होगा।
जीवन में आगे जाना है तो क्रोध आने पर भी माफ करना सीखें। मनुष्य के जीवन मे जिनवाणी का गठन होना आसान नहीं है। उसके लिए मोह, माया, क्रोध, छल से निकलने की जरूरत है। जब तक इनसे दूर नहीं होंगे तब तक जीवन का लक्ष्य पूरा नहीं होगा। क्षमा मनुष्य के पास्ट को बदले या न बदले पर भविष्य को जरूर बदल देती है।
समय का इंतजार न करें जल्द से जल्द क्षमा करदें। अभी क्षमा मांगने का समय मिला है तो अभी मांग ले। कल का इंतजार जीवनभर का इंतजार बन जायेगा। धर्मसभा में दुलीचंद छाजेड को संघ द्वारा सेवा रत्न सम्मान से अलंकृत किया गया।