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ज्ञान वाणी

क्षमापना पर्व संवत्सरी मनाया त्याग, तप और धर्माराधना के साथ: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

क्षमापना पर्व संवत्सरी मनाया त्याग, तप और धर्माराधना के साथ: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

गुरुवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी महापर्व पर उपस्थित जैन मैदिनी को प्रवचन में कहा कि साधर्मिक की सेवा करना तीर्थंकर परमात्मा की भक्ति करने के समान है। जो इस भावना के साथ अपने साधर्मिक भाइयों की सहायता करनी चाहिए। आज महापर्व पर ऐसी भावना भाएं कि इस संसार से आज तक बहुत कुछ लिया है और अब मुझे इस संसार को देना है और मानव, साधर्मिक, और संघ सेवा को अपना उद्देश्य बनाएं।

जीवन में यदि किसी के विचारों से असहमती हो तो उसे अपने मन में गांठ की तरह न बांधें, दुश्मनी का रूप न दें। क्षमा के महापर्व पर प्रण लें कि यदि किसी से एग्री न हो तो कभी भी एंग्री न होंगे। यदि संघ में किसी बात पर असहमति हो जाए तो भी ऐसा प्रयास करें कि संघ की प्रभावना ही हो विरोध नहीं। हम प्राप्त किए हुए सहयोग को तो भूल जाते हैं लेकिन विरोध करने के मुद्दों में अपनी शक्ति और ऊर्जा को व्यर्थ करते रहते हैं। असहमति पर चुप रहना सीखें और सहमति हो तो सक्रिय हो जाएं। यदि ऐसा हो जाए तो जिनशासन को विश्व के शिखर पर पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।

धर्म करने के लिए जितना आपका सामथ्र्य हो उससे ज्यादा करें और खाते समय सामथ्र्य से कम खाएं। धर्माराधना में इतने सक्रिय हो जाएं कि धर्म की शक्ति का विस्फोट हो जाए, कितने ही जन्म-जन्मांतर के बंध टूट जाए। जब सीमा से ज्यादा काम करते हैं तो आपमें उतना ही ज्यादा सामथ्र्य आ जाता है। महलों में रहने वालों ने भी कठोरतम तप, धर्माराधना कर संयम को अंगीकार किया और तीर्थंकर बने। अपने सामथ्र्य को कभी भी छुपाएं नहीं। आपके तन, मन और चेतना की अनन्त शक्ति को जाग्रत करें कि आपके वचन मुंह से निकले और काम हो जाए। भावना रखें कि मेरी जुबान को कभी भी गुस्से का स्पर्श न हो। जिन्होंने असंभव को संभव बनाया ऐसे महापुरुषों की ऐसी ही भावना रही। संघ की प्रभावना इस प्रकार करें कि जो भी व्यक्ति संघ के पास आए उसका कार्य पूर्ण हो जाए और वह समाज से जुड़ जाए, धर्म से जुड़ जाए।

आज के समय में कुसंस्कृति के प्रचार-प्रसार से प्रत्येक व्यक्ति को धर्म से जोडऩे की आवश्यकता है। संस्कृति पर दिनों-दिन आक्रमण हो रहे हैं। ऐसी संरचना बनाएं कि आपके घर श्रद्धा की पीठ बन जाए, परिवार का हर व्यक्ति धर्म का के मार्ग पर चले। परिवार में जो भी नया व्यक्ति शामिल हो वह चाहे किसी भी मान्यता या धर्म का हो, परिवार में आने के बाद पूर्णत: तीर्थंकर प्रभु के बताए मार्ग का अनुशरण करे।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि श्रद्धा दुर्लभ है इसे जीवन में बनाए रखना बहुत जरूरी है। आलोचना का महत्व बताते हुए कहा कि आलोचना के दर्पण के बिना धर्माराधना नहीं हो सकती। क्षमापना के इस महापर्व पर अपनी बुद्धि और अहंकार से परे अपनी की गई गलतियों के लिए क्षमापना करने से जन्म-जन्मांतर के पापों का क्षमापना करें, नहीं तो वे अपराध बिना आलोचना के आपके जीवन में राक्षस बनकर नए पापों का संसार बना देते हैं। इस जन्म के पापों की तुरंत आलोचना करें। यदि आलोचना नहीं करेंगे तो ये पाप अगले जन्मों तक चलते रहेंगे और आपकी आत्मा को जकड़ते रहेंगे। क्षमापना करते हुए भावना रखें कि ऐसे पापों से आपकी आत्मा मुक्त हो जाए।

जो अहिंसा, संयम, सुख-दु:ख में शांति से रहना सीखाते हैं, परमात्मा से जोड़ते हैं, वे गुरु होते हैं। जो भोगों में लगाकर बांधते हैं उनका त्याग करें। कम से कम अपने घरों में किसी भी वस्तु का दुरुपयोग न करें, अनर्थ दण्ड से बचें, चाहे-अनचाहे हुई हिंसा की आलोचना करें।

तीर्थेशऋषि महाराज ने प्रात: अंतगड़ सूत्र का संगीतमय श्रवण कराया

एएमकेएम ट्रस्ट के धर्मीचंद सिंघवी ने एएमकेएम धर्मपीठ कोष की स्थापना के बारे में बताया कि जहां कभी भी नए स्थानक बनाने की आवश्यकता होगी वहां यह पीठ स्थानीय संघ के साथ पूर्ण सहयोग करते हुए स्थानक का निर्माण किया जाएगा।

चातुर्मास समिति के महामंत्री अजीत चोरडिय़ा ने सभी का स्वागत करते हुए गुरुदेव की प्रेरणा से धर्म के अनुसार व्यवसाय संचालित करने से सकारात्मक परिणाम के बारे में अपने अनुभव बताए और कहा कि उन्हें तपस्या से सामथ्र्य और शक्ति का संचार प्राप्त हुआ, यह किसी विज्ञान से नहीं बल्कि तप और आत्मा की शक्ति के विकास से संभव है।

अभय श्रीश्रीमाल ने इस ऐतिहासिक चातुर्मास के लिए स्वयं को अध्यक्ष पद का दायित्व निभाने को अपना गौरव बताते हुए सभी का आभार जताया।

इस अवसर पर चेयरमेन नवरतनमल चोरडिय़ा, अध्यक्ष अभयश्रीश्रीमाल, कार्याध्यक्ष पदमचंद तालेड़ा, महामंत्री अजित चोरडिय़ा, कोषाध्यक्ष जेठमल चोरडिय़ा, यशवंत पुंगलिया, बी.गौतमचंद कांकरिया एएमकेएम ट्रस्ट के धर्मीचंद सिंघवी, कमलचंद खांटेड़, महावीर सुराणा, कमल छल्लाणी, गौतमचंद गुगलिया, सुनिल कोठारी के साथ-साथ अर्हम विज्जा फाउंडेशन और उड़ान टीम के सभी सदस्य और कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

सायं प्रतिक्रमण में लगभग तीन हजार लोगों ने प्रतिक्रमण का धर्मलाभ लिया। कांता चोरडिय़ा ने 40 के उपवास की तपस्या के पच्चखान लिए। इस अवसर पर उपाध्याय प्रवर ने अर्हम विज्जा फाउंडेशन और पैरेंटिंग शिविर से जुडऩे की प्रेरणा दी। अनेक तपस्वीयों के पच्चखावणी कार्यक्रम संपन्न हुआ।

शनिवार, 15 सितम्बर को नवपद एकासन और रविवार, 16 सितम्बर को मातृ-पितृ पूजन कार्यक्रम रहेगा।

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