चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मुथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा कि पर्यूषण एक ऐसा पर्व है जिसके अंदर न भय है, न लोभ है और न लालच। विस्मय भी नहीं है, न इह लोक सुख की भावना है, न कामना है।
मात्र आंतरिक शुद्धि की भावना, मनोविकार, इंद्रिय विकार से मुक्त होने की साधना है। तपे हुए दूध में जमी हुई मलाई की भावना के रूप में हमारा हृदय तैयार हो जाए। आत्मा का सबसे बड़ा शत्रु क्रोध है। आदमी सबसे ज्यादा क्रोध, मान, माया और लोभ को संभालता है।
क्रोध के सद्भाव में प्रकाश की यात्रा, परमात्मा की यात्रा संभव नहीं है। आत्मदर्शन संभव नहीं है। आत्म शांति संभव नहीं है। उत्तम क्षमा का पर्व कहने आया है कि जो अभी तक किया है जिसे संभाला है उस क्रोध को समाप्त कर दो। उससे मुक्त होने का क्षण आया है। स्वभाव की प्रचंडता, वैर की मजबूत गांठ क्रोध के कारण है।
यह अग्नि तुम्हारे भीतर की है। जो मात्र धुआं ही धुआं करती है। यह अग्नि तुम स्वयं ही बुझा सकते हो। इसकी जड़ तुम्हारे भीतर है। बहुत से लोग क्रुद्ध होकर जीते हैं। ऐसे लोगो से क्षमा की आशा रखना व्यर्थ है। उनके प्रति हम क्षमा का भाव रख सकते हैं। यही उत्तम क्षमा है।