यहंा बेरी बेक्काली स्ट्रीट स्थित शांति भवन में ज्ञानमुनि ने कहा आत्मा के कर्मों को नष्ट करने या मिटाने पर ही मोक्ष संभव है। ये कर्म ही संसार में भटकाव का मूल कारण है और यही बाधा रूप है।
अनुकूल कर्म सुख की अनुभूति करवाते हैं जबकि प्रतिकूल कर्म दुख का कारण बनते हैं। हालाकि दोनों ही बंधन रूप हैं। मोह कर्म सबसे भयंकर है। यह अच्छी-अच्छी आत्माओं को भटका देते हैं। यह मोह कर्म आठ कर्मों का राजा है।
उसे जीतना एवं नष्ट करने पर सारे कर्म धीरे-धीरे क्षीण होते चले जाते हैं। जिसने मोह को जीत लिया उसने सब कुछ जीत लिया। अभिमान और स्वाभिमान दोनों अलग-अलग होते हैं।
अभिमान में घमंड होता है जबकि स्वाभिमान में गौरव। हारने वाला मुंह नहीं दिखाता और जीतने वाले के लिए ढ़ोल बजते हैं। परिवार के बंधन के कारण व्यक्ति बंधन में पड़ा रहता है।