नागदा जं. निप्र– महावीर भवन में महासति पूज्य दिव्यज्योतिजी म.सा. ने भगवान तिर्थंकर की व्याख्या करते हुए कहा कि मानव अपने जीवन काल में कार्य करते हुए जानते अजानते कर्म के बंधनो में बंधता रहता है लेकिन वह इससे अनजान है कि मुझे इस कर्म का क्या फल भोगना पड़ेगा। भुगतते समय वह तिर्थंकरो भगवान से पुछता है मुझे आप किस कर्मो की सजा दे रहे है इसीलिये गुरू भगवन्त कहते है कि धर्म का फल मिले अथवा नहीं मिले लेकिन कर्म का फल तो अवश्य भोगना पड़ता है। महासति पूज्य नाव्याश्रीजी ने कहा कि चाहे धर्म मत करो लेकिन कर्म करने से बचना चाहिये। आत्मा अमर है, शरीर नश्वर है। यह केवल शरीर परिवर्तन करती है। शुभ कर्मो से अच्छी जगह अशुभ कर्मो से बद से बदतर जगह मिलती है प्रभु के संसार में।
मीडिया प्रभारी महेन्द्र कांठेड़ एवं नितिन बुडावनवाला ने बताया कि वरिष्ठ श्रावक श्री रमेशजी तांतेड मुनिमजी की धर्मचक्र की तपस्या पूर्ण होने पर श्रीसंघ अध्यक्ष प्रकाशचन्द्र जैन लुणावत एवं चातुर्मास अध्यक्ष सतीश जैन सांवेरवाला ने शॉल एवं माला से सम्मानित किया गया। तेले की लड़ी चन्द्रकांता भटेवरा एवं तपस्वी महासति सौम्याश्रीजी के 12 उपवास की तपस्या चल रही है। अतिथि सत्कार श्रीमती सुमन अजीत कांठेड की ओर से विवेक कांठेड एवं परिधि कांठेड ने स्वागत किया एवं नरेश कुमार नितिन कुमार औरा ने भी अतिथि सत्कार किया। जाप की प्रभावना का लाभ कोमलदेवी नरेशकुमारजी बुडावनवाला व रेशमबाई सुरेन्द्रजी भटेवरा एवं प्रीति ब्रजेश भटेवरा ने लिया।
दिनांक 13/09/2022
मीडिया प्रभारी
महेन्द्र कांठेड
नितिन बुडावनवाला