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ज्ञान वाणी

कर्मों की निर्जरा होती है भक्ति से : साध्वी धर्मप्रभा

चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा भक्ति मोक्ष प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन है। जैसे गंदे बर्तन में दूध फट जाता है वैसे ही यदि भक्ति के बिना चित्त में ज्ञान होगा तो विकृत हो जाएगा। भक्ति के लिए सबसे पहले अपनी आत्मा पर विश्वास एवं स्वयं में आस्था होना जरूरी होता है।

प्रेम के दो रूप होते हैं-भक्ति और विश्वास। भक्ति से जीव के कर्मों की निर्जरा होती है। संसार घटता है व शाश्वत स्थान मिलता है जबकि आसक्ति रूपी प्रेम कर्मबंध करवाने वाला है। साध्वी ने कहा सौ काम छोडक़र भोजन करना चाहिए, लाख काम छोडक़र दान एवं करोड़ काम छोडक़र प्रभु भक्ति करनी चाहिए। मोक्ष के चार मार्ग हैं- ज्ञान, दर्शन, चारित्र व तप। इसमें सबसे पहले दर्शन की प्राप्ति होती है। श्रद्धा की प्राप्ति होना बहुत दुर्लभ होती है।

साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा जो श्रद्धा से रहित है उसे ज्ञान प्राप्त नहीं होता और ज्ञान के अभाव में उसे जीवन में चारित्र गुण नहीं मिल सकता और चारित्र के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। श्रद्धालु पुरुष ही ज्ञान प्राप्त कर सकता है। ज्ञान प्राप्ति से ही इंद्रियों की संयम साधना हो सकती है।

साधक यदि ज्ञान प्राप्त करना चाहता है तो उसकी वीतराग के वचनों पर एवं उन वचनों को समझाने वाले गुरु में पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास होना चाहिए। विनयवान ही श्रद्धावान होता है एवं वही भक्ति एवं ज्ञानप्राप्ति कर सकता है। कामी, क्रोधी और लालची इन तीन प्रकार के व्यक्तियों से कभी भी भक्ति नहीं हो सकती। जिसके मन में राग-द्वेष एवं भेदभाव की भावना न हो। जहां विश्वास होता है वहीं भक्ति होती है।

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