साहुकार पेठ स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित आचार्य संयमरत्न विजय कोंडीतोप में विराजित आचार्य पुष्पदंतसागर के क्रांतिकारी शिष्य तरुणसागर को श्रद्धांजलि- अर्पित करने पहुंचे। मुनि संयमरत्न ने कहा कि आज तक हमनें तरु पर पुष्प खिलते देखें है, लेकिन यहां पर तो स्वयं पुष्प (पुष्पदंतसागर) ने तरु (तरुणसागर जी) को प्रकट किया है।
वे छोटी सी जिंदगी में बहुत बड़ा जीवन जीकर गए, कम समय में दम का कार्य कर गए। राष्ट्रसंत तरुणसागर ने अपने तपोबल,चिंतनबल से लाखों लोगों को ज्ञान का अमृत प्रदान किया है। शांति बाई के लाल होकर इन्होंने शांति के साथ नहीं,बल्कि क्रांति के साथ प्रवचन दिए। पवन नामक बालक ने अंत समय तक तरुण बनकर अपनी तरुणाई के साथ पवन की तरह निरंतर गतिशील रहकर सद्गति की ओर महाप्रयाण किया है। इनकी सहज-सरल भाषा जीवन की एक नयी परिभाषा बन गई।
तरु की तरह अपने चिंतन रूपी फल-फूल व छाया जगत को दे गए। इस अवसर पर राजेन्द्र भवन में बागोड़ा के हीराचंद जैन द्वारा की गई मासक्षमण तपस्या के अंतिम उपवास का पच्चक्खाण मुनि ने दिया। मुनि ने तप की महिमा बताते हुए कहा कि तपस्या द्वारा जन्म-जन्मान्तरों के एकत्रित पाप शीघ्र ही घटकर नष्ट हो जाते हैं। राजेन्द्रसूरि जैन धार्मिक पाठशाला के बच्चों द्वारा गीत द्वारा तपस्वी के तप की अनुमोदना की गई।