चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा ऋजु आत्मा ही एक दिन सव्रश्रेष्ठ स्थान पाती है। एक इनसान वह है जिसने घरबार त्याग कर संन्यास ले लिया, वस्त्र त्याग कर दिगम्बर बन गया, तप ऐसा कि हर माह मासखमण का पारणा करता है। ऐस त्यागी के मन में यदि माया आ जाए तो उसे अनंत बार मां के गर्भ में आकर दुख भोगना पड़ेगा।
इनसान थोड़े से लाभ के लिए धोखाधड़ी कर लेता है और अपने ईमान व विश्वास को बेच देता है। जिसके कर्म अच्छे होते हैं किस्मत उसकी दासी बन जाती है। जिसकी नीयत अच्छी होती है उसके लिए तो घर में ही मथुरा-काशी एवं घर ही तीर्थस्थल बन जाता है। वक्रात्मा कभी भी संसार से तिरने वाली नहीं है।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा मानव जन्म धर्मश्रवण, धार्मिक श्रद्धा एवं संयम में पराक्रम ये चार प्रधान अंग पाकर मुक्ति की ओर प्रवृत्त हुए सरल स्वभाव वाले व्यक्ति की शुद्धि होती है और शुद्धि प्राप्त आत्मा ही धर्म ठहरता है। फिर घी से सींची अग्नि के समान तप-तेज से दैदीप्यमान होती हुई वह आत्मा परम निर्वाण मोक्ष प्राप्त कर लेती है।
सरल स्वभाव यानी कपटरहित आत्मा ही सारे कर्मों का क्षय करने में सक्षम होती है। माया-मिथ्यात्व की जननी, अविद्याओं की जन्मभूमि और दुर्गति का कारण है। तिर्यंच योनि दिलाने के लिए परम बीज रूप और मोक्ष पुरी के लिए अर्गला रूपी विश्वास के वृक्ष को जलाने के लिए दावाग्नि की तरह यह माया बुद्धिमानों द्वारा छोडऩे योग्य है। माया एक शल्य, पाप, कषाय है एवं सदा त्याज्य है।